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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ मुख किसी नगर में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे । दोनों ही स्वजाति के थे। दोनों साथ साथ मन्दिर जाकर महाज्ञानी मुनिवरों के उपदेशों, प्रवचनों को सुनते और उन पर चिन्तन मनन भी करते और आशीर्वाद ले, मांगलिक सुनकर घर आ जाते । धर्म पर उन दोनों ही दृढ़ आस्था थी । दोनों के पास अपार सम्पति थी । दोनों मित्रों में से एक का नाम नेमीचन्द तथा दूसरे का शांतिलाल था । नेमीचन्द के एक पुत्र तथा दो पुत्रियों थी तथा शांतिलाल के एक ही पुत्र था । नेमीचन्द ने पुत्र और एक पुत्री का विवाह कर दिया था । सबसे छोटी पुत्री के लिये वर की तलाश कर रहा था कि एकाएक उसकी अपने परममित्र शांतिलाल के पुत्र पर दृष्टि गई, उसने सम्बन्ध के विषय में पत्नी से चर्चा कर उसकी राय जाननी चाही। सेठ पत्नी ने प्रसन्न मुद्रा में कहा- "नेकी और पूछ पूछ । इससे अच्छा घर और वर कहां मिलेगा? आंख मीच कर सम्बन्ध कर लो।" पत्नी की बात मानकर वह सेठ शांतिलाल के घर गया और उससे बात करके सम्बन्ध निश्चित कर सगाई का दस्तूर भी कर दिया । शांतिलाल ने भी दूसरे दिन परिवार सहित जाकर लड़की को कपड़े पहना दिये । दोनों परिवार में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। पर होनी को कोई टाल नहीं सकता । एक दिन शांतिलाल की अचानक तबियत खराब हो गई । खूब उपचार कराया, परन्तु रोग बढ़ता गया। मगर कोई लाभ नहीं हुआ । चिकित्सकों ने कह दिया- "हमने हमारी योग्यता और अनुभव के आधार पर जितनी भी दवाइयां इस रोग से मुक्त होने के लिये थी सब दे दी। अब तो परमात्मा का स्मरण ही एक मात्र सहारा है ।" ज्यों-ज्यों चिकित्सक उपचार करते रोग समाप्त होने के स्थान पर बढ़ता जाता । अन्त में एक दिन शांतिलाल हमेशा-हमेशा के लिये सुख की नींद सो गया । घर में कोहराम मच गया । अर्जित सम्पति शांतिलाल के साथ चली गई । थोड़ी बहुत जो सम्पति शेष थी उससे मां बेटे अपना जीवन व्यतीत करने लगे । पुत्र को व्यापार का अनुभव न होने से दुकान बन्द कर दी गई नौकरों- मुनीमों की छुटी कर दी गई। रात्रि में माँ-पुत्र को व्यापार के नियम व भाव-ताव तथा बाजार की हवा देख चलना सिखाने लगी । एक साल में ही लडका इतना चतुर हो गया कि व्यापारी वर्ग उससे राय लेने आने लगे । I जिस दिन शांतिलाल की मृत्यु हुई, उसी दिन से सेठ नेमीचन्द के विचार बदल गये । उसने विचार किया "सेठ शांतिलाल तो रहा नहीं, धन भी सब बरबाद हो गया। ऐसे घर में पुत्री का विवाह करना उचित नहीं जान पड़ता। दूसरे लड़के की तलाश करना चाहिये । मेरी पुत्री अति सुन्दर व सुशील तथा गृह कार्य में दक्ष है । लक्ष्मी की भी मेरे ऊपर असीम कृपा है, किसी लखपति के पुत्र के साथ विवाह कर दूंगा तो पुत्री का जीवन सुख से व्यतीत होगा। मगर बात जाति में फैल जाएगी कि "पहले शांतिलाल सेठ के पुत्र के साथ सगाई हो चुकी हैं, अब सम्बन्ध छोड़ दिया ।" जाति समाजवालों को तो धन से चुप भी कर सकता हूँ पर समाज के मुखिया के पास जो समाज के सिर मोर हैं, यह शिकायत पहुंच गई तो ? मुखिया बडा न्यायी है, वह सदा न्याय की बातकर समाज के लोगों को सन्मार्ग पर चलने की कहता है। उन्हें ज्ञात होते ही वे उसी लड़के के साथ विवाह करने का आदेश देंगे। अब कुछ ऐसा करना चाहिये कि न रहे बांस न बजे बाँसुरी! न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी । तो इसका उपाय यह है कि पुत्री का विवाह मुखिया पुत्र के साथ कर दिया जाए। सम्पत्ति नहीं है तो क्या हुआ? समाज में नगर में इज्जत तो है । फिर किसका साहस जो वहां तक पहुंचे?" 79 सेठ ऐसा विचार कर मुखिया से जाकर उनके पुत्र के लिये बात की । पुत्री को पुत्र के लिये स्वीकार करने हेतु अत्यधिक आग्रह किया । सेठ नेमीचन्द के आग्रह पर मुखिया ने स्वीकृति दे दी और बडी धूमधाम से मुखिया के विवाह की तैयारियां होने लगी । पुत्र हेमेन्द्र ज्योति हमे ज्योति 67 हमे ज्योति हमे ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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