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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ एक दिन उस नगर में किसी सन्त का आगमन हुआ। सेठ उनके दर्शनार्थ गया। मुनि का प्रवचन सुनकर सेठ को विश्वास हो गया कि सन्त प्रवर के अमृत तुल्य उपदेश से मेरा पुत्र अवश्य सुधर सकता है। इनकी वाणी में । अद्भुत जादू है जो किसी भी भटके प्राणी को राह पर ला सकता है। सेठ ने मुनिवर से हाथजोड़ निवेदन किया “भगवन्! आपकी कृपा हो जाये तो मेरा पुत्र सुधर सकता है। वह आवारा लड़कों के साथ रह कर पथ भ्रष्ट हो गया है ।" मुनिवर बोले- "तुम्हारे पुत्र को मेरे पास लाओ, सम्पर्क से संस्कार भी परिवर्तित किये जा सकते हैं ।" सेठ पिता की प्रेरणा से पुत्र मुनिश्री की सेवा में पहुंचा । मुनिश्री ने उसे समझाया, नित्य प्रवचन सुनने के लिये आने को कहा। लड़के ने कहा- "महाराज जी ! प्रवचन सुनने को तो अवश्य आऊँगा पर मेरा एक निवेदन है ।" सन्त ने प्रश्न किया - "क्या निवेदन है?" क्या शर्त है? - "मैं व्यसन का आदी हो चुका हूँ। आप कभी भी व्यसन त्यागने की बात मत कहना। यदि आपने त्याग करने की बात की तो मैं उसी दिन से आना बन्द कर दूंगा " सन्त प्रवर ने कहा- "बन्धु! ठीक है " अब सेठ पुत्र प्रतिदिन सन्त के पास आने लगा। घंटा दो घंटा बैठता वार्तालाप करता । धीरे-धीरे उसके मन में खानदानी संस्कार अंकुरित होने लगे । सन्त के प्रति आदर व श्रद्धाभाव बढ़ने लगा । एक दिन अवसर देखकर सन्त ने कहा "तू चोरी करता, परस्त्रीगमन करता तो मुझे कुछ नहीं कहना है। मांस खाता, मद्य पीता है, वेश्यागनम करता, जुआ खेलता, शिकार के लिये जाता है इन सबके विषय में मुझे कुछ नहीं कहना । मुझे तो तुझे केवल एक बात कहना है, यदि तू माने तो?" सेठ पुत्र ने आश्चर्य से कहा "जब इन व्यसनों के विषय में आपको कुछ नहीं कहना है तो फिर किस विषय में कहना है?" मुनिवर बोले "झूठ बोलने का प्रयत्न मत करना ।" सेठ पुत्र कुछ समय विचारता रहा - "झूठ कभी मत बोलना । अत्यन्त साधारण बात है? इससे मेरी आदतों पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है । जीवन में एक प्रतिज्ञा तो ली ।" तथा सन्त प्रवर से कहा- "अच्छा मुनिवर ! आपकी बात मेरे मन में उतर गई बात मानने योगय है इसलिये मानूंगा ।" सन्त प्रवर ने जीवन पर्यन्त झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा एवं संकल्प करवा दिया । सेठ के कानों तक जब यह बात पहुंची तो उसे अत्यन्त प्रसन्नता हुई । उसने विचार किया "अब पुत्र सही रास्ते पर आ जाएगा जो त्याग के नाम से दूर भागता था मन में आता जो बोलता था, आज मुनि भगवन्त की असीम कृपा से झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा तो ले ली। इससे बढ़कर और क्या शुभ हो सकता है?" I 1 झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा लेकर सेठ पुत्र जब अपने घर आया। थोड़ी देर पश्चात् जुआं खेलने का समय हुआ तो घर से निकलकर जुआं घर की ओर चरण बढाये तो उधर से लड़के के ताऊजी मिल गये । उन्होंने पूछ लिया। "बेटा! इधर किधर जा रहे हो?" लड़के का चेहरा उतर गया, विचार करने लगा मैंने आज ही तो झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा कर झूठ का त्याग किया । तथा अब सत्य कैसे कहूं कि जुआं खेलने जा रहा हूँ । पिताजी के बड़े भाई हैं, मेरे बड़े पिता हैं इनसे क्या हूं। सेठ पुत्र कुछ नहीं बोला और चुपचाप ताऊजी के साथ वापिस घर आ गया। आज पहली मर्तबा चाहते हुए भी जुआं खेलने न जा सका । ** 1 संध्या के समय वेश्या के घर की ओर जाने के लिये तैयार होकर घर से निकला थोड़ी दूर जाने पर उसके स्वयं के बड़े भाई मिल गये । पूछा - "बाबू ! इधर-किधर?" वह लज्जित होकर खड़ा हो गया । असमंजस की स्थिति उसके सामने खड़ी हो गई । सोचने लगा- भाई साहब को क्या उत्तर दूंगा? यदि झूठ बोलता हूं तो प्रतिज्ञा भंग होती है । वेश्या के घर जा रहा हूँ, यह कहने में लज्जा आती है बड़े भाई साहब हैं। बड़े भाई का सम्मान हेमेन्द्र ज्योति र ज्योति 64 हमे ज्योति *ज्य ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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