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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ सरपंच का कृपापात्र होने से उस साहूकार ने विचार किया आज नहीं कल बगीचे में जायेंगे । यह सोचकर वह गांव में ही रह गया । सायंकाल के समय न्याय सरपंच और पटेल ने चौकीदार और अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि घर-घर जाकर तलाश करो कि हमारी आज्ञा के विरूद्ध कोई गांव में रह तो नहीं गया है । कर्मचारी गांव भर में घूमें । उन्होंने देखा गांव के सब घरों में तो अंधेरा है, केवल साहूकार के घर में प्रकाश है । कर्मचारियों ने जाकर सरपंच से निवेदन किया कि सरपंच साहब, गांव में सेठजी रह गये हैं, अन्य कोई नहीं रहा। सरपंच ने तत्काल आदेश दिया कि उसे बन्दी बना कर इसी समय मेरे समक्ष उपस्थित करो । सेठ करोड़ों की सम्पति का स्वामी और सरपंच का चहेता था । लेकिन कर्मचारियों ने जाकर उसके भवन की सांकल खटखटाई । सेठजी घर में अकेले ही थे । भीतर से ही बोले - कल प्रातः आ जाऊँगा । कर्मचारियों ने कहा- अब आपकी इच्छा काम नहीं आ सकती । आपको अभी चलना होगा । सरपंच साहब का आदेश है । और यह हथकड़ियाँ भी पहननी होगी। सेठजी के पैरों तले की जमीन खिसक गई । उन्हें स्वप्न में भी ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी । उन्हें बाहर आना पड़ा । हाथों मे हथकड़ियाँ पहना दी गई । तथा सरपंच के सामने उपस्थित किया गया । सेठजी को पूरा विश्वास था कि सरपंच साहब मुझे क्षमा कर देंगे । परन्तु वहां भी आशा के विपरीत हुआ । सरपंच ने सेठजी को हिरासत में ले लेने का आदेश दे दिया । वह जेल में बन्द कर दिया गया । प्रातःकाल होने पर कर्मचारियों ने पूछा - सरपंच साहब ! सेठजी का क्या किया जाय? सरपंच ने आदेश दिया - उसे टोप और चड्डी पहना कर अंधेरे कुए में डाल दो । तत्काल आदेश का पालन हुआ । सेठजी की आंखों में आंसू आ गये । सेठजी का बुरा हाल देख सेठानी दहाड़े मार रोने लगी । उसने अपने पति के तोल का सोना देना स्वीकार किया और फिर जवाहारात भी देना मंजूर किया, पर सरपंच ने स्पष्ट कह दिया - इस सेठ ने मेरे आदेश का पालन नहीं किया है । जिस दिन से सेठजी कुएँ में उतारे गये उसी दिन से सेठ पत्नी एक बार भोजन करती, एक ही स्थान पर बैठी रहती तथा वस्त्र भी फटे पुराने ही पहनती थी । एक महीना, दो महीना व्यतीत हुये और धीरे-धीरे बारह महीने भी समाप्त हो गये। सेठानी बहुत दुःखी हो गई । उसका एक लड़का था । वह पढ़ने लिखने जाता और सारे नगर के लोग एक स्वर से कहते - सेठ क्या, नगर गांव की नाक था । जाती वाले कहते - हमारा एक रत्न चला गया । सुख-दुःख में सबके काम आते थे । किसी के घर कोई काम आ जाता तो सेठजी आगेवान बन जाते थे । न मान था, न गुमान था । कितने भले आदमी थे । अपार सम्पति होने पर भी कभी अभिमान नहीं करते थे । भंग जैसी नशीली वस्तु तक का कभी सेवन नहीं किया । पर नारी को सदा माता-बहिन के समान समझा । चंदे का काम पड़ता तो सबसे पहले और सबसे अधिक देने वाले वही थे। इस प्रकार जब नागरिक लोगों को सेठजी का अभाव बहुत खटकने लगा तो दस बीस व्यक्ति मिल कर राज्य के राजा के पास पहुँचे और बोले-अन्नदाता ! सेठजी का अपराध क्षमा हो जाना चाहिये । उन्होंने अत्यधिक दण्ड भोग लिया है। सरपंच ने आकर पहले ही घटनाक्रम से राजा को अवगत करा दिया था । अतः राजा ने क्रोध में आकर कहा - उसकी सिफारिश करोगे तो तुम सबको भी कुएँ में उतरवा दूंगा, क्योंकि सरपंच का आदेश मेरा ही आदेश होता है । व्यवस्था की दृष्टि से वह मेरा ही प्रतिनिधि है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 40 हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्य ज्योति in Edukati o ner imlly
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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