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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ I समय व्यतीत होता गया और सेठ पुत्र पढ़ लिख कर होशियार हो गया । सगाई करने के लिये कई लोग उसके घर आने लगे । सेठानी रोती- रोती कहती मेरे पति ऐसे कष्ट में है । मैं क्या सगाई करूं । लोगों ने कहा सगाई होने दो । विवाह के समय दौड़ धूप करके छुड़ाने का प्रयत्न करेंगे । सेठ को दण्ड मिलने के थोड़े दिन पश्चात् ही उसका परिवार नगर में रहने आ गया था । सगाई हो गई । लग्न का समय आया तो नगर के पच्चीस सम्मानित सदस्य जिनका राजा पर प्रभाव था, एकत्र हुये। सबने विचार किया - कोई अमूल्य उपहार लेकर राजा के पास चलना चाहिये और सेठजी को बन्धन मुक्त कराना चाहिये । वे लोग गये और सम्मान काम से आये हैं। पंचों ने कहा । • नहीं नहीं, कोई काम हो तो कहो । मैं प्रजा का सेवक हूं । कोई बात हो तो बेहिचक कहो । राजा ने कहा पंचों ने कहा महाराज! प्रार्थना स्वीकार करें तो एक निवेदन करना है । राजा ने कहा अवश्य करो । आप लोगों के सब अपराध क्षमा करता हूँ । स्पष्ट कहो । राजा से आश्वासन पाकर सदस्यों ने निवेदन किया अन्नदाता हम पंचगण यह प्रार्थना करने आये हैं कि सेठ जो कुएँ में है उनकी पत्नी सेठानी बहुत रोती है । उनके पुत्र का विवाह होने वाला है । प्रार्थना है कि केवल एक माह के लिये सेठ को कुएं से बाहर निकालने के लिये न्याय सरपंच को आदेश दे दें या बुलाकर कह दें। - सहित प्रणाम करके बैठ गये। तत्पश्चात् राजा ने दीवान से पूछा पंच लोग किस अन्नदाता के दर्शन के लिये । पंचों की बात सुनकर राजा ने मुँह फेर लिया। फिर कहा- तुम्हारी दूसरी हजार बातें मानने को तैयार हूँ, पर तुमने यह माँग क्यों की? किन्तु मैंने वचन दे दिया है, उसे पूरा करूंगा । राजा ने एक माह के लिये सेठ को सरपंच को कह कर कुएं से बाहर निकलवा दिया। सेठजी के बाल बनवाये गये, स्नान-मंजन करवाया गया और सुन्दर वस्त्र पहनने को दिये गये और फिर कार में बिठलाकर आवास तक 1 भेजा गया। जब वह भवन में पहुंचे तो दूर से देखते ही उनकी पत्नी खड़ी हो गई और रोने लगी । कहने लगी भला हो उन लोगों का जिन्होंने प्रयत्न करके आपके दर्शन करवाये । सेठ की पत्नी अपने हाथ से नित्य नये व्यंजन बना कर पति को खिलाने लगी । दो चार दिन में ही सेठ के चेहरे पर चमक आ गई । वह पगड़ी बाँधकर दुकान पर गये तो हजारों व्यक्ति उनसे मिलने पहुँचे । तरह-तरह से लोग खुशी मनाने लगे । सेठजी ने देखा कि और तो सभी लोग प्रसन्न हैं, पर मुनीम के चेहरे पर कोई प्रसन्नता दिखाई नहीं देती । इसका कोई विशेष कारण होना चाहिये। सेठजी ने मुनीम से पूछा तो वह कहने लगा - इसमें खुशी की बात क्या है । एक माह बाद पुनः वही स्थिति आ जाएगी । यही सोचकर मैं दुःखी हूँ । विवाह का सब काम तो हम कर लेंगे। आप एक काम कीजिये । राजा और रानियों को किसी प्रकार उपहार आदि देकर ऐसा आदेश प्राप्त कीजिये पुनः कुएँ में न उतरना पड़े । कि ducation Interio सेठ ने कहा- मुनीमजी पुत्र के विवाह की यह खुशी फिर कब मनाने को मिलेगी? वह काम तो अन्तिम दस दिनों में भी कर लूंगा । सेठ की बात सुनकर मुनीम बोला नहीं सेठजी मेरा कहना मानो, नहीं तो पछताना पड़ेगा । हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 41 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति www.jbinelibracy
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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