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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन गंथ। शीश नमाता -राजेश जैन, इन्दौर उत्तांग हेमेन्द्र तुमने सबको निभाया, सबको सम्हाला, सबको सवांरा जिन शासन की भक्ति में सबको लगाया । बैरी जो बन गया है, छोटा भाई समझ कर उसको भी निभाया । क्षमा-शीलता तुम्हारी, इतिहास बन गई है, सत्य और प्रेम की मिसाल बन गई है । शीतल हो हिमाद्री की तरह, ऊँचे हों हिमालय से, दुनिया को तुमने प्रेम का संदेश सुनाया । राजेन्द्र की भक्ति में सबको लगाया । धनचन्द्र की सिद्धि को, भूपेन्द्र की शक्ति को, यतीन्द्र की विद्या को, गुरु हेमेन्द्र सूरि तुमने दुनिया को बताया । भक्ति में डूब कर चरणों में तुम्हारे भक्त मैं राजेश शीश अपना नमाता । सच्चो सुख सन्त सेवा (मालवी) -विट्ठलदास निर्मोही, उज्जैन पलक पांवड़ा आज विछइदो, कंकू पगलिया माण्डोजी । हेमेन्द्र सूरिजी यां आवेगा, दरवाजे तोरण बान्दोजी ।। धन्य भाग हे एसा सन्त का, दरसन घर बेठा पावांगा । गंगाजल लइके मेलि राख्यो, इनका पांव पखारांगा ।। फेरि दिजो नोतो गाम में, चरणामृत लेवा आजोजी । पलक पांवड़ा आज विछइदो, कंकू पगलिया माण्डोजी ।।1।। सच्चा सन्त का दरसन दुरलब, कदि कदि नगे आवे है । सन्त तो रमताजोगी भय्या, किका किकाज घरे जावे है । इनके जिमावांगा बड़ा प्रेम से, परसाद लेवा सब आजोजी । पलक पांवड़ा आज विछइदो, कंकू पगलिया माण्डोजी ।।2।। सन्त समागम यां हुइरयो हे, इनके सुणवा आजोजी । धरम करम की वातांकेगा, जीवन में विके तम लाजोजी ।। अणि जीव के बंधन में तम, ओर जादा मत बान्दोजी । पलक पांवड़ा आज विछइदो, कंक पगलिया माण्डोजी ।।3।। हेमेन्दा ज्योति * हेमेन्दा ज्योति 79 हेगेन्च ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति walaman
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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