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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ .. रहे हैं। परमश्रद्धेय आचार्यश्री जैसी सरलता एवं सादगी अन्यत्र यहीं देखने को मिलती है। इस अवसर पर मैं अपने हृदय की गहराई से श्रद्धेय आचार्यश्री के सुस्वस्थ जीवन एवं सुदीर्घ जीवन की कामना करते हुए उनके श्री चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूँ। अधूरे कार्य पूरे हुए - मांगीलाल भबूतमलजी कार्य तो चलते रहते हैं, पूरे भी होते हैं किंतु यदि किसी महापुरुष का आशीर्वाद और प्रेरणा मिल जावे तो कार्यों में गति आ जाती है और वे समय पर पूर्ण भी हो जाते हैं। यह भी आवश्यक है कि महापुरुष ऐसे कार्यों को पूरा करने के लिये कहे। केवल उनकी उपस्थिति ही कार्यों की पूर्ति का निमित्त बन जाती है। परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का जब से दक्षिण भारत की ओर पदार्पण हुआ तभी से इधर के चल रहे निर्माण कार्यों में स्वाभाविक रूप से गति आ गई। इसका परिणाम यह हुआ कि अनेक स्थानों पर पूज्य आचार्यश्री के पावन सान्निध्य में प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुए हैं। पू. आचार्यश्री के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के उपलक्ष्य में एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कर उनके पावन चरणों में समर्पित करने का संकल्प स्तुत्य है। मैं आपके इस प्रयास की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामना प्रेषित करता हूँ। पूज्य आचार्यश्री के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदना। सबके लिये द्वार खुले हैं। -विमलचंद घेवरचंदजी मुथा, तणुकु वर्तमान समय में प्रायः यह देखने को मिलता है कि कतिपय आचार्यगण, विशिष्ट मुनिराज आदि विशिष्ट व्यक्तियों से अलग कक्ष में द्वार बंद कर चर्चा करते हैं। कुछ श्रावकगण भी ऐसा ही चाहते हैं और करते भी हैं। इससे विपरित पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. चाहे छोटे कक्ष में विराजमान हो चाहे किसी बड़े हाल में। वे अपने उसी स्थान पर छोटे-बड़े विशिष्ट अतिविशिष्ट व्यक्ति से चर्चा करते हैं। सबके सामने चर्चा करते हैं। वहाँ कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। (एक अनुपम संतरत्न - -महेन्द्रकुमार नरपतराजजी कोठारी, भिवंडी संत आचार्य बहुत हुए किंतु जितनी सरलता, सहजता, दयालुता, कारुण्यभाव,समता, पर दुःखकातरता, निर्भिमानता, निर्लोभिता, सादगी, सेवापरायणता परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य भगवान श्रीमद् विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. में देखने को मिली उन्नती अन्यत्र दुर्लभ है। ऐसी महान विभूति के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित कर उनके पावन चरणों में समर्पित करना श्लाघनीय है। मैं आपके इस प्रयास की सफलता के लिये हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ और पू.आचार्यश्री के सुदीर्घ सुस्वस्थ जीवन के लिये अभिनन्दन के लिये शासनदेव से विनती करता हूँ। प.पू. आचार्यश्री के पावन श्री चरणों में शत-शत अभिनंदन। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 61 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति U plication Forpineap
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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