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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ 4 जीवन धन्य हुआ -पारसमल बसंतीमल रूंगरेचा, मन्दसौर परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर प्रकाश्यमान अभिनन्दन ग्रंथ के प्रकाशन के इस अद्वितीय अनुपम ग्रंथ के लिये मेरा हृदय अति उत्साहित है । घणी घणी खम्मा म्हारा हेमेन्द्र गुरुजी ने । परम पूज्य गुरुदेव हेमेन्द्र सूरिजी म. सा. से मेरा सन् 1970 में परिचय हुआ । तब से आज तक मैं पूज्य गुरुदेव से अनेक बार सम्पर्क में रहा । पूज्य गुरुदेव के धर्मलाभ पत्र क्षमा पत्र प्रतिष्ठा पत्र अनेक कार्यक्रम के पत्र स्वयं पूज्य गुरुदेव के हस्त लिखित आते रहे। और आज भी आप स्वयं नहीं लिख सकते किंतु अन्य मुनि सभी की हस्त लिखित धर्मलाभ एवं क्षमा पत्र आते रहते हैं । पूज्य गुरुदेव का मन निर्मल शत्रुजय के पवित्र जल के समान है । वाणी अमृत के समान है । आप ने आत्म ध्यान तप से अपने तन मन को इतना निर्मल बना लिया है कि जिस की व्याख्या इस छोटे से प्रारूप में करना असंभव है। आपके दर्शन के लिये जो भी श्रावक-श्राविका या बच्चे आते हैं सभी को आप के मुख से धर्मलाभ एवं हस्त से आशीष मिलता है । मैंने अनेक बार आपके चरणों में वंदन कर आप का आशीर्वाद लिया है । पूज्यश्री के आशीर्वाद से, गुरुदेव के प्रभाव से मेरा जीवन धन्य हुआ है । मेरे परिवार के जीवन में सुख शांति बनी हुई है । प्रभु से मैं प्रार्थना करता हूं कि पूज्य श्री के आशीर्वाद हम सब पर बने रहे । कोटि कोटि वंदन के साथ सकल विश्व का जय मंगल हो । यह मेरी भावना है । समगलमय शुभकामना - रवीन्द्र जैन, मंत्री 26वीं महावीर जन्म कल्याणक शताब्दी संयोजिका समिति पंजाब महावीर स्ट्रीट, मालेर कोटला - 148 023 सर्व प्रथम इस समिति के समस्त सदस्यों की ओर से आचार्य श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म. के चरणों में कोटिशः भाव वन्दना । आप का पत्र प्राप्त हुआ । पढकर हार्दिक प्रसन्नता अनुभव हुई कि वहां का श्रीसंघ पूज्य गुरुदेव के जन्म अमृत महोत्सव व दीक्षा हीरक जयंती पर एक अभिनंदन ग्रंथ निकाल रहा है | महापुरुषों का जन्म किसी जाति, सम्प्रदाय के लिये नहीं होता । उनके कार्य मानवमात्र की आत्मा के कल्याण के लिये होते हैं । जैन धर्म में आचार्य का पद तीर्थंकर के बाद आता हैं वह 36 गुणों का धारक संघ का शास्ता धर्म गुरु होता है । फिर जहां तक दीक्षा का प्रश्न है व दीक्षा तो एक घड़ी का भव बंधन कर देती हैं | फिर इतना लंबा दीक्षा पर्याय मानवता को समर्पित किया है हमारे गुरुदेव ने । भगवान महावीर ने उस पुरुष को बुरा माना है जो गुणवान के गुणों का गुणगान नहीं करता । गुणवान के गुणों का गुणगान का माध्यम हमारा यह अभिनंदन ग्रंथ बने । इसमें विश्व प्रसिद्ध विद्वानों द्वारा जुटाई शोध सामग्री का प्रकाशन जैनधर्म के माध्यम से आचार्यश्री का विश्व को परिचित कराने में सहायक सिद्ध होगा । सन् 2000 में इस विश्व स्तर पर भगवान महावीर का 2600 साला जन्म दिन मनायेंगे । ऐसे पवित्र अवसर पर यह ग्रंथ 2600 साला जन्म महोत्सव कार्यक्रम में मील का पत्थर साबित होगा । हम पुनः इस त्याग मूर्ति, तपस्वी आगमज्ञ जिनशासन प्रभावक आचार्य को जैनों के चारों सम्प्रदायों की संस्था की ओर से इस मंगलमय अवसर पर कोटिश; अभिनंदन करते हैं। उनके श्री चरणों में कोटिशः वन्दन, श्री संघ को जय जिनेन्द्र । हेगन्द्र ज्योति हेगेन्र ज्योति 55 हेमेन्य ज्योति* हेगेन्ना ज्योति For Pratea
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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