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________________ है। वे वृक्ष को प्राणीमात्र का दोस्त समझते थे। सुरक्षित राष्ट्र के लिए वन एवं जीव सृष्टि को सुरक्षित करने की बात पर जोर देते थे। संक्षेप में, गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी की एक महान् मानवतावादी संत होने के नाते सदा काल प्रासांगिकता बनी रहेगी। माँ अपनी संतान को सत्संस्कार देती है। पू. स्वतंत्रता आंदोलन के उपरांत अछूतोद्धार का . गुरुदेव क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे। संदेश भी अपने व्याख्यानों में दिया। वे मानते ने प्रत्येक कान तक धर्म को पहुंचाने के थे कि उच्च कुल में जन्म लेने मात्र से कोई लिए ध्वनिवर्धक यंत्र का उपयोग किया तथा महान् नहीं बन जाता। मनुष्य अपने कर्म एवं साध्वी जी भगवंत को वंदना करने का आदेश । संस्कारों से महान बनता है। धर्मप्रेमी को श्रावकों से किया क्योंकि साध्वी जी माता चाहिए कि वह जड़ता, रूढ़ियों, अन्याय आदि समान हैं। पू. गुरुदेव ने साध्वी जी को पाट का विरोध करें। पू. गुरुदेव वर-कन्या विक्रय, पर बैठकर व्याख्यान देने की इज़ाजत एवं अनमेल विवाह, दहेजप्रथा को असहय और आग्रह किया। इन सब बातों का फल यह है अनुचित मानते थे। बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह कि नारी सम्मानित एवं जागृत हुई है। आदि समस्याओं को भी आड़े हाथों उन्होंने पू. गुरुदेव महात्मा गांधी जी के लिया है। विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने न सिर्फ खादी । _ पू. वल्लभ गुरु विविध प्रदूषणों से को अपनाया, औरों को भी प्रेरित किया। प्रदूषित पर्यावरण से सख्त नाराज़ थे। उन्होंने उन्होंने खादी में देश सेवा और देश प्रेम देखा। पर्यावरण के लिए वृक्षों की महत्ता को समझाया भक्ति के भाव-तरंग ! आत्मगुरु से रो रो कर संयम का धन माँगने वाले धर्मवीर ! सच बता दो नेत्र-निर्झरों से बड़ौदे की पावन भू को आप्लावित क्यों किया था ? क्या धर्मवाटिका को सींचने का यह प्रथम प्रयास था ? या मानवमात्र को शासनरसिकता के पाश में बाँधने का यह अश्रु निर्मित पुण्य रज्जुबन्धन था ? या गुरुचरण-प्रक्षालनार्थ प्रथम प्रयास था ?या भक्तिमाला के मौक्तिकों का पानिपपूर्ण आभास था ? सशैवला पदिमनी को निर्मला कौन कहेगा। धूम्रोत्पादिका दीपशिखा को निर्धूमा कौन कहेगा ?पर प्रतिबिम्बग्राहिणी रत्नावली को उज्ज्वला कौन कहेगा ?शशांकधारिणी मयंककला को विमला कौन कहेगा ?सद्यः परिम्लानता प्राप्त कुन्दमाला को धवला कौन कहेगा ? परन्तु हे देव ! तुम्हारी चरित्ररूपी चादर पर एक भी धब्बा नहीं। क्या यह आपकी साधना का महाघ नहीं। बाल-ब्रह्मचारी आपकी जय हो। _कितनी वृद्धवय थी और कितनी सेवा की उमंग। नवयुवकों को लजाती थी आपकी आत्मिक वीरता। नाथ ! बम्बई की ओर विहार करते समय वृद्धत्वापन्न चरण-कमलों को पृथ्वी पर कैसे रखा था ? अथवा पद्मोपम मानकर पृथ्वी ने ही उन्हें अतिमृदुता से संभाल लिया था। आत्मगुरु के पैगाम को आसमुद्र फैलाने वाले योगी। अपनी वृद्ध काया पर तो दया करते। अडिग कर्मयोगी ! मध्यम वर्ग को समर्पित कर दिया वह बूढ़ा शरीर भी। दधीचि ! भक्तों की प्रार्थना न मानी। मोहमयी (बम्बई) नगरी पहुँच गए। वहाँ किसने मोह लिया गुरुदेव। मध्यवर्ग की ममता ने ? नर से नारायण बनने के लिए वहीं योगनिद्रा में रम गए। वल्लभ से बढ़कर विश्ववल्लभ बन गए। अमर रहो-भक्त-मन-मानस-विहारी परमहंस । गुरुदेव शिरोमणि ! जय हो ! आपकी जय हो !! तुम्हारा ही "राम" 173 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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