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________________ इहलोक में यह दोष रे।" मांसाहार : मात्र जिव्हा तृप्ति के लिए मांसाहार करना ठीक नहीं होता। निर्दोष जीव की हिंसा तो पाप है। अन्य के मांस से स्व-पोषण करने वाला अधम होता है। राक्षसवत् निर्दयता आती है। जीव हिंसा करने से जीव को नरक मिलता "हिंसा जीवों की करने से जीव नरक में जा गिरता। पर मांस से अपने मांस का नीच पुरुष पोषण करता। निर्दयी इस सम नहीं, लोक में निधुण नर वह कहलाता। समयमात्र तृप्ति के कारण पर के प्राण हरण करना राक्षस सम तिस के हिये में रहे निरंतर निर्दयता।" मदिरापान : मदिरापान बुरी लत है। मदिरा सेवी को कृत-अकृत का विवेक नहीं रहता, सूअर की तरह गंदा होकर गलियों में घूमता है। बेटी को बहू के रूप में देखता है। अर्थात् वह विवेकहीन हो जाता है। "नहीं बूझता कृत्याकृत्य को मदिरा पाने हार जी, जिम सूअर गंदगी में उठता-फिरता गली मंझार जी, पुत्री को वधू सम देखे, स्त्री समगान निहार जी।" वेश्या गमन : वेश्या गमन शारीरिक, आर्थिक, मानसिक एवं पारिवारिक संकटों को बुलाता है। अन्य बुराइयों को भी साथ लाने वाला, अपयश फैलाने वाले दुर्गुण है। “निर्लज्ज वेश्या के वश होकर निज गुण दे उतार परभव नरक के दुःख सहना, रोवै जारो जार अधिक जबरदस्त हैं। ब्रह्मचर्य आतम गुरु वल्लभ हैं _आचार्य प्रवर वल्लभ गुरुदेव ने व्यसन जग तारणहार।" मुक्त राष्ट्र की परिकल्पना की है। उन्होंने राष्ट्र चोरी : जिसे चोरी की लत लग जाती है, वह एवं समाज को बेड़ियों से मुक्त करने के लिए झूठ, हत्या एवं बदमाशी से कभी नहीं डरता। व्यसन मुक्त पराक्रमी नागरिकों की भूमिका पर चोरी पकड़ी जाने पर दण्ड एवं अपयश मिलता बल दिया था। समाज की स्वस्थ संरचना के लिए सच्चरित्र की महत्ता बताई। गुरु वल्लभ "चोरी करने का व्यसन जिस जीव को ने स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता पश्चात् व्यसन लग जाये, मुक्ति और सच्चरित्र को विशेष महत्त्व दिया झूठ, खून, बदमाशी से खौफ जरा नहीं है। इस प्रकार हमारे गुरु वल्लभ नवयुग खाय, निर्माता राष्ट्र के महान् लोकनायक थे। चोरी से इस लोक में होय राज्य का दण्ड, प.पू. वल्लभ गुरुदेव का जीवन बदनामी अतिपाय के, पराभव नरक मानवता से मंडित था। उनके मंत्रव्यानुसार, प्रचण्ड।" मानववाद सामूहिक सामंजस्य एवं सार्वभौम परनारी सेवन : जो परनारी का संग-सेवन ध्येय का अग्रदूत है। वह मानव को व्यक्तिगत करता है वह मूर्ख है। परनारी विषवेल बराबर संकुचितता से ऊपर उठाकर परस्पर स्नेह, है, परनारी का कभी विश्वास नहीं करना सौहार्द के लिए प्रेरित करता है। पू. गुरुदेव ने चाहिए। सत्संग के सात्विक प्रभाव की प्रतिष्ठा करते “परनारी विषवेल है, हुए कहा है, सत्संग का अच्छा और व्यापक नहीं जिसका विश्वास प्रभाव मानव के जीवन पर पड़ता है। चाहत मूर्ख अधम नर, शिक्षा (ज्ञान) के अनन्य पक्षधर : पू. वल्लभ तिस से सुख की आस" गुरुदेव ने नयी पीढ़ी को संस्कार सज्जित करने परपुरुष सेवन : स्त्री को परपुरुष से बचना के लिए शिक्षक एवं शिक्षा की भूमिका को चाहिए। परपुरुष संगति से स्त्री को हर तरह महत्त्वपूर्ण माना है। सत् साहित्य सृजन का का नुक्सान होता है। लाभ बालकों पर खास रूप से पड़ता है। इसके इस प्रकार गुरुवर विजय वल्लभ ने । अध्ययन से बालक पर अच्छे संस्कार पड़ते 'व्यसन से राष्ट्र को बचाईए' नामक निबंध में हैं। कहा है, सप्त व्यसन राष्ट्र के भयानक शत्रु हैं। पू. गुरुदेव ने शिक्षकों को संदेश देते इन व्यसन शत्रुओं का हमारे राष्ट्र पर चारों हुए कहा कि “आप बालकों को ऐसी शिक्षा तरफ से आक्रमण हो रहा है। सामान्य शत्रु तो दीजिए कि जिससे देश एवम् समाज समृद्ध हो शरीर को खत्म करता है किन्तु ये व्यसन हमारे सके। उन्हें वेतन भोगी मात्र न रहते हुए राष्ट्र के तन-मन-बुद्धि और आत्मा पर घात गुरुपद को सुशोभित करना है। करते हैं और उन्हें गुलाम बना देते हैं। ये पू. गुरुदेव नारी शिक्षा के भी पक्षधर व्यसन इन्सान का सर्वनाश कर देते हैं इसलिए थे। वे मानते थे कि यदि माँ पढ़ी लिखी होगी शत्रु राष्ट्रों की अपेक्षा ये व्यसन रूपी शत्रु तो समाज भी पढ़ा लिखा होगा। पढ़ी-लिखी 172 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Jain Education International Fde Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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