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________________ साथ कैबरे और डिस्कोडांस की मदहोशी में डूबी देश एवम् संसार की पीढ़ी से क्या उम्मीद की जा सकती है ? क्या वह भारत और संसार को आतंकवाद, भ्रष्टाचार, देशद्रोह तथा अमानवीय दुष्कर्मों की नागचूड़ से मुक्त करा सकेगी ? समाज का सम्भ्रात वर्ग भी शराब, जुआ आदि का शिकार है, जिससे समाज अशांत और सौंदर्यहीन हो रहा है। शराब आदि व्यसनों से देश की तेजस्विता विनष्ट हो रही है। आचार्य वल्लभ सूरि जी का काव्य मानववाद की भावना से अनुप्राणित है। आपने स्वस्थ्य समाज निर्माण के लिए व्यसनमुक्त समाज की परिकल्पना की है। उन्होंने सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए भोग को अस्वीकार और त्याग को अपनाने की बात को प्रतिपादित किया है। गुरुदेव विजय वल्लभ जी ने अपने काव्य में त्याग पर आधारित भारतीय संस्कृति का प्रतिपादन किया है। उनका कहना है, “भारतीय संस्कृति का मेरुदण्ड त्याग है, भोग नहीं । परमार्थ उसकी आत्मा है, सेवा उसका शरीर है। हमारी भारतीय संस्कृति समन्वय प्रधान संस्कृति है।” उन्होंने समाज के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए सप्त व्यसन त्याग की बात पर जोर दिया है। व्यसन मुक्त समाज और राष्ट्र ही प्रगति कर सकता दान की महत्ता : पू. गुरुदेव वल्लभ ने लौकिक एवम् 'अलौकिक जीवन को समन्वित करने के लिए दान की महत्ता का प्रकाशन किया है। उनके महाकाव्यों के चरित्रनायक अपने विपुल राजवैभव को छोड़ने से पूर्व वर्षीदान करते हैं तत्पश्चात् मोक्ष के कल्याणकारी पथ पर प्रस्थान करते हैं। दीक्षा अंगीकार करने के 50 Jain Education International पश्चात् जीवों के कल्याण के लिए अपना जीवन दान कर देते हैं। आचार्य देवेश श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने वैष्णव दर्शन के ज्ञान, भक्ति और धर्म का जैन दर्शन की रत्नत्रयी- सम्य-ज्ञान, सम्यग् दर्शन एवं सम्यग् चारित्र में समन्वय किया। उन्होंने विश्व कल्याण हेतु समन्वय दृष्टि ' अनेकान्त दृष्टि' को अपनाने की शिक्षा दी है। गुरुराज विजय वल्लभ सूरि जी की समाजाभिमुखता 'सप्त व्यसन त्याग', बारहमासा भाग-1 और 2', 'श्री द्वादश पूजा', 'श्री चारित्र पूजा', 'श्रावक - करणी' 'स्त्री की पति को प्रार्थना', स्त्री की शील विषयक रक्षा' इत्यादि रचनाओं में नैतिकता, समाज सुधार, मानवोत्कर्ष, राष्ट्र एवं संसार का सुख, समृद्धि एवं शांति आदि विषयों को आलोकित करती है। उदाहरण "दण्ड अनर्थ सदा परिहरिये सात जगए चंदोबा धरियै, पानी, दही खुला नहीं रखियै । ब्रह्मचर्य को धरिये, दिवस वरिम पच्चक्खान करी मनदंभ सदा परिहरियै । षट् आवश्यक संध्या केरे करिये पाप को हरिये । सागारि अनशन कर मन में मंद अनि परिहरिये।" वल्लभ काव्य सुधा से “अनुपम सीख सुनो नारी, निशिदिन मन वच काय करो पति की सेवा उरधारी। सुंदरी स्नेह हृदयवारी, परशय्या पर पाँव न धरना परम हितकारी न पर घर निर्लज्ज हो जाना। घर-घर फिरु नार शरम दिन नित फरमान ।" 'वल्लभ काव्य सुधा'। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only पू. गुरुवर की रचनाओं में नवजीवन निर्माण के स्वर्णिम सूत्र हैं जिन से व्यक्ति और समाज को नई दिशा, नप्योत्साह एवम् नप्यप्रकाश मिलता है। आरोग्य विषयक आपने सीख देते हुए कहा “जो चाहे शुभ भाव से, निज आतम कल्याण । तीन सुधारे प्रेम से, खान-पान औ' परिधान ।" श्रद्धेय गुरु वल्लभ जी अलंकार मोह को सामाजिक अभिशाप बताते हैं। मध्य वर्गीय गृहस्थ धन के अभाव वश जेवर नहीं बनवा पाता। आभूषणों के मोह के कारण समाज में कलह, अशांति और दहेज जैसी बुराईयां फैलती हैं। जीवन भी विकृत और दूषित होता है। श्रीमद् वल्लभ गुरुदेव ने व्यापारियों को नीतिवान बने रखने की सीख देते हुए कहा है : " कूट लेख लिखिए नहीं, मिथ्या उपदेश तौले तौल-माप कूड़ा नहीं करिए, सत्यश्रुत को पाल" जुआ, मांस भक्षण, मदिरापान, परस्त्री गमन, वेश्या गमन, चोरी आदि दुर्गुणों से बचने तथा पर-स्त्री, पर-पुरुष से दूर रहने की बात मानव समाज को समझाई है। जुआ जुआ बड़े दुःख को बुलाता है, बुद्धि : को खराब करता है, परिवार को शोक संतप्त बनाता है। लोग अथम करते हैं और समाज में बेइज्जती होती है । यह इस लोक का सबसे बड़ा दोष है। "अति आपदा का ऑक है, खेले कुबुद्धि लोक है। मैला करे कुल शोक है, अधम- अधम कराई रे अपकीर्ति होय दोष रे, 171 www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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