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________________ श्राचार्य विजयवल्लभमरि स्मारक ग्रंथ धर्मघोष सूरि राउ, धरम माग प्रकास करो। प्रह ऊठी गुरु पाय, पणमउ भविया एक मनि ॥६॥ अविचलु जिणवरु धम्मु, अविचलु संजम भरु लियउ। धम्मघोष सूरि जम्मु, धनु धनु महि मंडलि भएउ |॥७॥ तसु पटि गरुन प्रमाणु, सीलभद्र सूरिहि रयणु। अकल अगंजिय माण, पूर्णदेवसरि वरणीए ॥८॥ विजयसेन सूरि जाणि, पासदेव पट उद्धरण। महिमा मान प्रमाणि, महिमंडलि महिमागलउ ॥६॥ धनु धनु धर्मदेव सूरि, सारंग रा प्रतिबोधिउ। ऊगमतइ नितु सूरि, सुहगुरु नितु नितु पणमीए ॥१०॥ त्रिनि भव सारंग राय, देवाएसिहिं गुरि कहीय। घूघल जग विक्खाय, पड़िबोही त्रिनि भव कहीया ॥ ११ ॥ घूघल राणि कीधु, थाराउद्रे वर नयरे। उतिम जगि जस लीधु, सरसति मंडपु कारविउ ॥ १२ ॥ गोश्रम गुरु निसंकु, धर्मदेव सूरि अवतरिउ। तसुपटि गयण मयंकु, धर्मचंद्र सूरि गुरु रयणु ॥ १३ ॥ मयण महा भड़ माण, लीलां दूसमि निरजिणीउ । धरम रत्न सूरि जाणु, धम्म धुरंधर अवतरिउ ॥१४॥ धर्म तिलक सूरि धीरु, पीपल गच्छह मंडणउ। मोह मयण भड़ वीरु, जीतउ लीला बाहुबले ॥१५॥ धरमसिंह सूरि सीह, विसम महाभड़ वसि करण । धरम काज धुरि लीह, लहइ वीरु कविता गुणि हिं॥ १६ ॥ तसुपटि महियलि भाणु, धर्मप्रभसूरि गुरु गरुनो गुणि। अागम छंद प्रमाण जाण, राउ जयवंतु जगे॥ १७ ॥ सुललित वाणि रसालु, धर्मशेखर सूरि गुरु पवरो। नामिहिं ऋधि विसालु, जगि जयवंता जाणीइ ए ॥ १८ ॥ राय राणा दीइ मान, गरूया गुरु गुण गाईइ ए। पार न लाभइ जान, धर्मसागर सूरि धर्म निधे ॥ १६ ॥ महिमावंत अपार, श्री धर्मवल्लभ सूरि जगि जाणीइ ए ज्ञान तणउ भंडार, बालापणि पट ऊधरउ ए ॥२०॥ गुण गण रयण विशाल, गुरह माल भवियण सुणउ। उम्मूली मोह जाल, भव समुद्द लीला तरउ ॥ २१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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