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पिप्पल गच्छ गुर्वावलि
वीर जन्मोत्सव में जिणवर जन्मि करइ सोमाई, तह नई गखइ देवि अंबाई। पीपल गच्छ परधान सुणीजइ, श्री धर्मप्रभ सूरि प्रणमीजइ ॥५॥ देसाहिव्व अति साहस धीरो, श्री सारंगदेव गुण गम्भीरो । कल्पवंचावइ साहसधीरो, हेमु मंत्री अति सविचारो ॥६॥
वीरजन्माभिषेक सौधर्मवासी वरदो विमानः द्वात्रिंशलक्षाधिपः समानाः। सौधर्मनामा हरिराजगाम श्रीवीरजन्मोत्सवकर्तुकामः ॥ १ ॥ अपूर्वसम्मदः पूर्व दिक्पतिः पूर्वदिग्मुख ।
स्नानसिंहासनं भेजे शक्रः क्रोडीकृतुप्रभुः ॥२॥ अहो भविक लोको! धर्म प्रभावको द्वादशव्रतपालकु सावधानतया समाकर्ण्यता 'अहो भविक लोक पुण्य प्रभावकु! सावधान थिका सांमलुः । हुं सौधर्मइ देवलोकि । सौधर्मवतंसि विमानि बत्रीस लाख विमान तणइ परिवारि अनेकि देव देवांगना तेहे परवर्यु हुंतु । ईणइ भरतखेत्रि मध्यम खंडि गोहिलवाडि देसि राजि श्री सारंगदेव तणइ राजि। ठाकुर साधु तणइ प्रतिराजि पाठमा तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभस्वामि तणइ भुवनि। श्री धर्मप्रभसूरि तणइ कल्पि वाच्यमानि मंत्रीश्वर हेमा तणइ उपरोधि चरम तीर्थंकर श्री महावीर तणु जन्म जाणी महोच्छव करिवा अाव्या छउं ॥छ॥
इशानवासी वर इन्द्रराजश्चतुर्भुज, शूलधृतौ करौ च । वृषेण आद्यो वृषवाहनश्च देवैः कृतं पुष्पकमास्थितोहं ॥१॥ इहांतरे घोषनिनादबोधितो धृतो विमानैरिह चागतोहं । संख्येय लख्यैः किल अष्टविंशतैः समागतो वीरमहोत्सवेन ॥२॥ ईशानकल्पादुत्तीर्य तिर्यग् दक्षिणवर्मना ।
एत्यं नंदीश्वरं दक्ष्यैशाना रतिकरे गिरौ॥३॥ अहो श्रावकाः पुण्यप्रभावकाः सकलकल्याणकारकाः सावधानतया श्रूयतां। अहमीशानदेवलोक तउ अष्टाविंशति विमान लक्षैरिह वीरमहोत्सवेन गुंदिकायां समागतो व महे || अहो श्रावकु पुण्यप्रभावकु सकल कल्याणकारक सावधान थिका सांभलु । हुँ ईशान देवलोक तु अठावीस लाख विमान तणउ अधिपति स्वामी। शूलपाणी वृषभवाहन हुंतउ। महाघोषा घंटा तणइ निनादि करी। पुष्पकविमानरूढः ईशान कल्पतु दक्षिण दिशिई ऊतरी नंदीश्वर तणइ मानि श्रावी गुहिलवाडि देसि राज श्री सारंगदेव तणइ राजि ॥१॥छ।
सनत्कुमाराधिपतिः सुरेन्द्रः समागतो जन्ममहोत्सवाय ।। महच्चभक्त्याभिरभार संयुतः सुरासुरैः कांचनचूलिकायां ॥१॥
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