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________________ पिप्पल गच्छ गुर्वावलि पीपलगच्छ गुर गरुअो गणघर, श्रीयधर्मदेवसूरि हऊया प्रवर । त्रिभवन सुद्धि जस गुरिजगि भाखीउ, दाखीउ प्रगट प्रमाण पहु॥ पहु प्रगट दाखिय भब्ध भाखिय, राउ सारंग दे तणो। अनेकि नेकि प्रमाण पयड़ी, भगूं केता गुण घणा। श्रीधर्मचंद्रह चंदयम जगि, मोहतिमर विहंडणो। तस पाटि धम्महसूरि रयण्ह, गच्छ पीपल मंडणो । पीपल ॥२॥ य(जि?)णवर प्रणीत पयासीय, धम्म धर्मतिलकसूरि सूरिवर।। तस तणइ अनक्रमि श्रीय धर्मसंघ सूरि तासपाटि श्रीधर्मप्रभसूरि। तस पाटि धर्मप्रभसूरि, गुर वर ठामि गूंदी सोहए। अवध बध जन सयल, सावइ तीह प्रति पड़िबोह ए। गरूय गुर पन्नत तत्तह, झाय झाण निरंतरो।। कस्तूरि अगर कपूर चंदनि, धुव खेवइ यणवरो॥ यणवर० ॥ ३॥ जयवंतु यण शासणि सोहए, मोहए मणउ भवियण तणाए । सफल कला संपन्न सुहजि सुन्दर, मंदिर महिमानिधान नर ।। नरनिपुण सुंदर महिम मंदिर, चतुर गुर दया पुरो। विवेक विनय विचार वक्ता, न कोइ समवड़ि नरवरो । संगति सुखनधि शोक नासइ, घणउं बहु गुणवंतश्रो। कंमित्त मत प्रति सूरि सदगुर, तेजि तपि जयवंतउ ॥ जयवंतु० ।। ४ ।। ॥ इति गुर नु धुल समाप्त ॥ छः।। पीप्पल गच्छ गुर्वावलि-गुरहमाल वीरजिणेसर पाय, समरीय सरसति सामिणीय । वरणि, सुगुरुवर राय, पीपल गच्छ अलंकरण ।।१।। चंद्र गच्छि सुविसाल, संतिसूरि गुरु बरणीए। निम्मल कीर्ति माल, जगि सचराचर लहलह ए ॥ २॥ ... बोलई बाल गोपाल, सांतिसूरि जसु पयडु जगे। जीतउ दूसम कालु, विजयसंह सूरि तासु पटे ।। ३ ।। धर्मविजयु जणि कीधु, दूसम दल बलु निरजिणीउ । विजयसिंह सूरि लीधु, सुजस सबहू जगि सासतउ ॥४॥ तासपटि देव भद्र, सूरि राउ प्रसंसीए गरू उ गुणहसमुद्र, मानमहातमि अागलउ ।। ५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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