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________________ पंजाब केसरी का पंचामृत कारण सुचारु रूप से अपना कार्य आगे नहीं बढ़ा सके और स्वामी विवेकानंद ने जो रामकृष्ण मिशन (Ramkrishnaa Mission) स्थापित किया उसको आगे व्यवस्थित ढंग से चलाते गये। अाज सारे संसार में उनका प्रचार जारी है और देश देश में उसकी शाखाएं चला रही हैं और विदेशी लोग भी संन्यासी बन कर उनके मिशन का काम आगे बढ़ा रहे हैं। हमारे पूर्वाचार्यों ने तो संसार को संगठित करने के लिये सुंदर से सुंदर स्यादवाद न्याय का निर्माण किया जिसको विदेशी विद्वान् Unifying force संसार की संगठनशक्ति-कहते हैं। उसके अनुयायी आपस में संगठन नहीं साध सकते तो संसार को क्या संगठन का सबक सिखा सकेंगे और क्या जगत् के कदाग्रह और क्लेश का अन्त कर सकेंगे। यह तो ऐसी बात है कि जिस बीमारी का जो डाक्टर स्वयं शिकार बना है उसके शर्तिया इलाज का वह विज्ञापन कर रहा है। इसलिये हमें स्यावाद या नयवाद की विशालता और सुन्दरता समझ कर आपस में संगठन साधना चाहिये। शिक्षा जैसे यंत्रबाद के युग में चाहे प्रकाश करना है, चाहे पंखा चलाना है, चाहे टेलीफोन से बात करना है या किसी भी प्रकार मशीन को चलाना है तो बिजली का उपयोग करना आवश्यक समझा जाता है। वैसे ही चाहे सामाजिक, व्यावहारिक, अथवा धार्मिक प्रगति साधना है तो शिक्षा के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। अाज अाधुनिक शिक्षा से लोग घबराते हैं और कहते हैं कि शिक्षा से संस्कृति का नाश होता है। परन्तु मैं तो उसको वैसी ही भ्रांति मानता है जैसे कि बिजली जला देती है इसलिये बिजली के उपयोग से दूर रहना चाहिये। इस तरह से यंत्रवादी घबराए होते तो सारे संसार में यंत्रवाद का साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाते। जिस काल में जिस प्रकार की शिक्षा प्रचलित हो, उसको प्राप्त किए बिना हम अपना हित साध ही नहीं सकते। बौद्धों तथा वेदान्तियों ने अपना प्रचार संसार के कोने कोने में फैलाया, इसका कारण यही है कि उनके प्रचारक अाधुनिक शिक्षा में आगे बढ़े हुए थे। श्राज काँग्रेस ने अंग्रेजी शासन का सामना करके स्वराज्य कैसे लिया? इसीलिए न कि हमारे नेता अाज की प्रचलित शिक्षा में निष्णात बने हुए थे। दर असल शिक्षा का बुरा असर जो हमें अपनी संस्कृति पर नज़र आता है, उसका कारण तो यह है कि हम अपनी संस्कृति-रक्षण के पाये पर शिक्षा के साधन खड़े नहीं करते हैं। आज हमारे कितने ही शिक्षालय खुले हुए नजर आते हैं परन्तु आदर्श शिक्षकालय दो चार भी देखने में नहीं आते। अगर हम शिक्षक ही संस्कृति के उपासक तैयार नहीं करते और संस्कृतिघातक शिक्षकों के द्वारा हम अपने बालकों को शिक्षा दिलाते हैं तब सुन्दर परिणाम कैसे आ सकता है ? बनाना है गोली और मशीन है टीकडी की तब भला टीकडी (Tablet) की मशीन में गोली कैसे बनेगी। हमारी संस्कृति को लक्ष्य में रख कर शिक्षा के केन्द्र खोले नहीं जाते और न शिक्षक खास संस्कृति पोषक शिक्षा देनेवाले तैयार किये जाते हैं शिक्षा को दोष देना और उससे दूर रहना समाज की उन्नति में बाधा पहुँचाना है, इसलिये शिक्षा से न घबराते हुए उसके लिये सुन्दर आयोजन करके, आदर्श शिक्षालय और शिक्षकालय स्थापित करके, आदर्श शिक्षकों को जीवनभरण पोषण की चिन्ता से मुक्त करके उनके द्वारा शिक्षा का प्रचार करना समाजोन्नति के लिये अत्यंत लाभकारी है। साहित्य जितना प्रचार हम प्रवचन, व्याख्यान या संभाषण से कर सकते हैं, उससे हजार गुणा ज्यादा काम साहित्य के द्वारा हो सकता है। जो लोग आज अपने धर्म या संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं वे सब भिन्न भिन्न भाषाओं में साहित्य प्रकाशन द्वारा ही कर रहे हैं और उसमें सफल होते हुए दृष्टिगोचर हो रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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