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________________ स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ Tanseases 8888888 568386068 परामनोविज्ञान तथा मनः शारीरिक अनुसंधानों के निष्कषों का योग शास्त्र ने बहुत पहले पता लगा लिया था। मनुष्य मात्र, मन, प्राण, शरीर और इन्द्रियों ही नहीं है, पर एक जीवन्त चेतना भी है और उस चेतना में अनंत शक्ति निहित है, इस रहस्य को योग शास्त्र ने उजागर किया। चेतना के विस्तार के साथ चित्त में अन्तर्निहित शक्तियों व गुण, प्रबुद्ध एवं सजीव हो उठते हैं और तभी जीवन के विविध व्यापारों की एक के बाद एक उत्कृष्ट एवं व्यापक वीथियां खुलती हैं। अन्तर्मुखी होने पर जीवन के सारे रहस्यों का पता चलता है और इस खोज के लिए और इससे शक्ति प्राप्त करने के लिए महर्षि पतंजलि का योगशास्त्र एक बहुत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी उदघाटक ग्रंथ है। (५)मीमांसा और उसके आचार्य जैमिनी लगभग ५०० ई. पू. के आसपास आचार्य जैमिनी ने मीमांसा सूत्र की रचना की। आचार्य जैमिनी नाम से कई लेखक व ग्रंथकार हुए। अतः मीमांसा सूत्र के रचनाकार के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। मीमांसा सूत्र में लगभग ३००० सूत्र हैं जिनमें धर्म व उससे संबंधित विषयों पर विचार किया गया है। इसमें एक हजार अधिकरण हैं, जिन्हें ‘साठपादों में बांटा गया है व सम्पूर्ण ग्रंथ में १२ अध्याय हैं, जिससे इस ग्रंथ को 'द्वादस लक्षणी' भी कहा जाता है। संपूर्ण ग्रंथ का लक्ष्य है, धर्म के बहु विधि अंगों का विवेचन करना, पर यहां धर्म का अर्थ है वेदों द्वारा अनेक सूत्रों में प्रतिपादित लोक कल्याण का साधनयुक्त यज्ञ कर्म। यज्ञ दो प्रकार के होते हैं, प्रकृति अथवा आद्य रूप और विकृति। प्रकृति वह यज्ञ है जिसमें सांगोपागं ब्राह्मणचर्या का सूक्ष्म विवेचन है, जबकि विकृति का आधार अतिदेशवाक्य होने के कारण प्रकृति की तरह कर्तव्य मानकर उन पर भी विचार किया गया है। प्रकृति की चर्चा प्रथम छ: अध्यायों में होने से उसे 'उपदेश' व विकृति की चर्चा आगे के छ: अध्यायों में होने से उसे 'अतिदेश' षटक कहा गया है। शेष चार अध्यायों में यज्ञ और धर्म से संबंधित अन्य कई बातों का विवेचन है। मीमांसा सूत्र में यज्ञ के विधिवत आथादन सिद्धान्त की शुद्ध मन्त्रार्थ के रूप में व्याख्या व निरूपण है व यज्ञ के विविध विहित रूपों में शुद्ध एवं सतत अनुष्ठान का विवेचन श्रौत्र सूत्र साहित्य में है। जेमिनी ने धर्म की व्याख्या की है - "चोदना लक्षणो Yधर्म" अर्थात केवल वेद भाष्युतिकी प्रेरणा (चोदना) जिसके लिए हो और जो साथ ही (अर्थ) मानव कल्याण कारण बने वही धर्म है। इस प्रकार जेमिनी ने धर्म के लिए वेदयाश्रुति की प्रेरणा को ही प्रमाण माना Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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