SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्शन-दिग्दर्शन अन्त कहां होता है। चित्त में संज्ञान और समाधि की स्थिति कैसी होती है। किन विधियों का विकास कर अंतिम ध्येय तक पहुंचा जा सकता है, आदि प्रश्नों का विवेचन है। द्वितीय साधना पाद में योग के प्रायोगिक पक्ष के सिद्धांतों का विवेचन है। योग की आवश्यकता, उपादेयता, प्रगति के सोपान व विधिवत प्रयोग आदि विषय इसमें समाहित हैं। तृतीय विभुति पाद में पूर्वोक्त प्रयोगों की आन्तरिक विधियों व आध्यात्मिक एवं ऐहिक सिद्धियों का वर्णन है। चतुर्थ कैवल्य पाद में मन, चित्त, तृष्णा, अहंभाव, वासना, मोक्ष का स्वरूप और जीवात्मा की उसमें स्थिति आदि का विवेचन व दार्शनिक समस्याओं पर समीक्षा है। ___ मानव प्रकृति के बंधन से आबद्ध होने के कारण दुखी और अतृप्त है। उसके मुक्ति का अनुभव कराना योग का मार्ग है, जिसके आठ अंग हैं। सर्वप्रथम इस हेतु मानसिक व नैतिक शुद्धि की आवश्यकता है जो पांच यम (संयम) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह एवं पांच नियम - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान को अंगीकार करने से होती है। यम, नियम के साथ आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, पांच बहिरंग साधनों व धारणा, ध्यान और समाधि तीन अंतरंग साधनों से आदमी अहंकार, तृष्णा, अज्ञान के बंधनों से अपने को मुक्त कर लेता है। एक वस्तु में चित्त की वृत्तियों को एकाग्र कर अबाधित ध्यान से जब मन महत्तर और गहनतर चेतना में बदल जाता है, तब मनुष्य अपनी समग्र चेतना में एकाकार हो जाता है और इस समाधि की अवस्था को कैवल्य या मोक्ष प्राप्ति की अवस्था कहा जाता है। प्रकृति के बंधन से मुक्त होने के परम उद्देश्य के साथ ईश्वर व आत्मा के खोज की अन्य विधियां मिल जाने से योग में नई नई प्रक्रियाएं व शक्तियां जुड़ गई और तांत्रिकों ने कुण्डलिनी, लयतंत्र, मंत्र इत्यादि स्वतंत्र योग विधियों को जन्म दिया व उसमें अष्टांग योग की मुख्य बातों का समावेश कर दिया। तिब्बत, चीन, जापान, आदि देशों में जब बौद्ध भिक्षु प्रचारार्ध गए, तब उन्होने इसी प्रकार की योग विद्या का अन्यत्र प्रचार किया। योग शास्त्र का विषय व्यक्तिगत समाधि होने के कारण यह विषय समाज के लिए वैसे उपयोगी न भी हो, तब भी चित्त विश्लेषण व चेतना की गहराई तक पहुंच, जहां वासनाएं जन्म लेती हैं और जो व्यक्ति की प्रकृति को बदलने व सुधारने में बाधा उत्पन्न करती है, आदि ऐसे विषय हैं जो व्यक्ति के सुख दुःख की अनुभूतियों को प्रभावित करते हैं। अतः इनके अध्ययन की सामाजिक जीवन में निसंदेह उपादेयता है । आधुनिक Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy