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________________ नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा । तुमं पितेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा । (७२/८) (३) परिस्थतियां बहुत कठिन हैं । व्यक्ति दिन-ब-दिन दुर्बल होता जा रहा है, उसे किसी भी क्षण मृत्यु घेर सकती है। बहुत ही कालात्मक भाषा में कहा गया है - णत्थि कालस्य णागमो (८२/६६ ) - मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है और फिर भी व्यक्ति अपने जीवन से अत्यधिक लगाव पाले हुए है। वह अपने दैहिक सुख के अनेक साधनों को जुटाता है और समझता है यह अर्थार्जन उसे सुरक्षा प्रदान कर सकेगा । वह धन एकत्रित करने के लिए स्वयं चोर लुटेरा बन जाता है किन्तु एक समय ऐसा भी आता है कि चोर और लुटेरे ही उसका धन छीन ले जाते हैं और इस प्रकार सुख का अर्थी वस्तुतः दुःख को प्राप्त होता है (८४ / ६६ ) । संसार की इस निःसारता को समझना ही 'क्षण को पहचानना है ! दर्शन-दिग्दर्शन अतः महावीर कहते हैं धैर्यवान पुरुषों को अवसर की समीक्षा करनी चाहिए और मुहूर्त भर भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। अंतरं च खलु इमं संपेहाए - धीरे मुहुत्तमविणोपमयए । (७२/११) वस्तुतः जिस व्यक्ति ने क्षण को पहचान लिया है वह एक पल का भी विलम्ब किए बिना अपनी जन्म-मरण की स्थिति से मुक्ति के लिए प्रयास आरम्भ कर ही देगा | कौशल इसी में है। इसीलिए महावीर कहते है- कुशल को प्रमाद से क्या प्रयोजन | अलं कुसलस्स पमाएणं ( ८८ /६५ ) । और वे निर्देश देते हैं कि उठो और प्रमाद न करो - उट्टिए णो पमायए । (१८२/२३) 'प्रमाद' किसे कहते है ? प्रमाद न करने का क्या अर्थ है ? जो पराक्रम करता है, प्रमाद नहीं करता । महावीर पराक्रम के लिए प्रेरित करते हैं, प्रमाद के लिए नहीं । महावीर के दर्शन में पराक्रम का अर्थ है क्रोध, मान, माया और लोभ आदि कषायों को शांत कर देना, शब्द और रूप में आसक्ति न रखना तथा पूरी तरह अप्रमत्त हो जाना (देखें, ३३८/१५)। वैसे भी प्रमाद छः प्रकार के बताए गए है - १. मद्य प्रमाद, २. निद्रा - प्रमाद, ३. विषय प्रमाद, ४. कषाय प्रमाद, ५. द्युत प्रमाद तथा ६. निरीक्षण (प्रतिलेखना) प्रमाद (स्थानांग सूत्र, ६-४४ ) । इन सभी प्रकार के प्रमादों से बचना ही पराक्रम है और यह पराक्रम व्यक्ति को स्वयं ही दिखाना है। इसके लिए उसे किसी अन्य से कोई सहायता प्राप्त होने वाली नहीं है । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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