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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ महावीर कहते हैं कि संसार में व्याप्त आतंक और महाभय जिस व्यक्ति ने देख और समझ लिया है, वही हिंसा से निवृत्त होने में सफल हो सकता है (पृ. ४३/१४६,१४५)। आतुर लोग जहाँ स्थान - स्थान पर परिताप देते हैं, वहीं दूसरी ओर देखे कि साधुजन संयम का जीवन जीते हैं। लज्जमाण पुढो पासां (पृ. ८/१७)। ऐसे शांत और धीर व्यक्ति देहासक्ति से मुक्त होते हैं - इह संति गया दिविया (पृ. ४२/१४६)। संक्षेप में महावीर हमें आमंत्रित करते हैं कि हम प्रत्यक्षतः देखें कि संसार में हिंसा का कारण जो आतंक व्याप्त है उसका मूल देहासक्ति में है और इस आसक्ति को समाप्त करने के लिए संयम आवश्यक है। वे इस संदर्भ में साधुओं को लक्षित करते हैं और कहते है कि देखो, उन्होंने किस प्रकार हिंसा से विरत होकर संयम को अपनाया है। ऐसे लोग ही हमारे सच्चे मार्गदर्शक हैं। क्षण को पहचानो और प्रमाद न करो महावीर कहते है कि हे पंडित ! तू क्षण को जान - खणं जाणाहि पंडिए (७४/२४)। __यह जैनदर्शन का एक बहुत महत्वपूर्ण सूत्र है। प्रश्न किया जा सकता है कि यहाँ 'क्षण' से क्या आशय है ? 'क्षण' मनुष्य की यथार्थ स्थिति की ओर संकेत करता है जो कम से कम संतोषजनक तो नही ही कही जा सकती। यदि हम अपनी और संसार की वास्तविक दशा की ओर गौर करें तो हमें स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि - (१) यह संसार परिवर्तनशील है और यह सदैव एक सा नहीं बना रहता। आज व्यक्ति यौवन और शक्ति से भरपूर है किन्तु कल यही व्यक्ति वृद्ध और अशक्त हो जाएगा। आयु बीतती चली जा रही है और उसके साथ-साथ यौवन भी ढलता जा रहा है - वयो अच्चेइ जोब्वणं च (७२/१२) (२) दुःख और सुख व्यक्ति का अपना-अपना होता है, इसे भी समझ लेना चाहिए। जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं, (७४/२२)। अतः यह सोचना कि कोई भी अन्य व्यक्ति / परिजन विपरीत स्थितियों में व्यक्ति का सहायक हो सकता है, केवल भ्रम मात्र है। न तो हम दूसरों को त्राण या शरण दे सकते हैं और न ही दूसरे हमें त्राण या शरण दे सकते ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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