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________________ १९ एवं २०वीं शताब्दी में जैन श्रावकों का बड़ी संख्या में बम्बई, कलकत्ता, बिहार, आसाम आदि में जाना हुआ था। इनके साथ कई साधु और पंडितों का भी इस क्षेत्र में जाना हुआ। इस काल में हिन्दी का विकास और उल्लेखनीय रचनाएँ होनी शुरू हुई थीं। बनारसी दास की रचनायें इस दृष्टि से बड़ी उल्लेखनीय हैं। इनमें खड़ी बोली का व्यापक उपयोग है। राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द जाति के ओसवाल गोखरू गोत्र के थे । इनका योगदान सर्वत्र उल्लेख किया हुआ है। कई प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद हिन्दी में किया गया। उपमितिभवप्रपंचकथा का एक विस्तृत अनुवाद कुमुदचन्द्र द्वारा वनारस में किया गया। यह ग्रंथ अब अजमेर के जैन ग्रंथालय में सुरक्षित है और अभी अप्रकाशित है । १९वीं शताब्दी में ही जैन साधुओं और विद्वानों ने स्थानीय भाषाओं के साथसाथ हिन्दी में भी लिखना प्रारम्भ कर दिया था। इस काल की गद्य की भी कई अच्छी रचनाएँ मिलती हैं । खरतरगच्छ के विनयभक्ति ने “जिनलाभसूरिदवावैत' की रचना की। इसमें गद्य का उपयोग है। यह गद्य हिन्दी के आदिकालीन गद्य में रखा जा सकता है। विद्वानों का ध्यान अभी इस ओर नहीं गया है । इनको रचना के कुछ अंश इस प्रकार हैं : ऐसी पद्मावती माई बड़े सिद्ध साधुओं ने ध्यायी। तारा के रूप बौद्ध शासन समाई। गौरी के रूप में शिवमत वालों ने ध्यायी । जगत में कहानी हिमालय की गाई । क्षमाकल्याण १९वीं शताब्दी के अच्छे विद्वान् थे। इनको रचनाओं में हिन्दी का अच्छा प्रभाव है। खड़ी बोलो के कई अंश इनकी रचनाओं में उपलब्ध हैं। ज्ञानसागर नामक खरतरगच्छ के विद्वान् की निम्नाकित हिन्दी रचनायें भी मिलती हैं। यथा :-पूर्वदेशवर्णन, कामोद्दीपन (सं० १८५६ में), मालापिगंल छन्दशास्त्र (सं० १८७६), निहानबावनो (सं० १८८१), भावछत्तीसी (सं० १८६५) आदि । उत्तमचन्द भण्डारी महाराजा मानसिंह के समकालीन जोधपुर निवासी थे। इन्होंने अलंकार आशय नामक ग्रंथ लिखा था। इनके भाई उदयचन्द भण्डारी भी अच्छे लेखक थे। इनके द्वारा लिखे गये ग्रंथों का काल सं० १८६४ से १९०० के बीच में आता है। इनमें लगभग ५० ग्रंथों की सूची दी जा सकती है। इनमें ज्ञानप्रदीपिका. ज्ञानविनती. लघचाणक्य समासार. स्वरोदयश्रृंगार कवित्त आदि प्रमख है। गजल साहित्य भी खड़ी बोली को १९वीं शताब्दी की श्रेष्ठ रचनाओं में रखा जा सकता है। १. जोधपुरवर्णन हेम कवि सं० १८६६ २. जोधपुर वर्णन गुलाब विजय ३. नागौर वर्णन मनरूप सं० १८६२ ४. मेड़ता वर्णन मनरूप सं० १८६५ ५. सोलन वर्णन मनरूप सं० १८६५ ६. बीकानेर वर्णन लालचन्द सं० १८३८ उत्तरप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश में भी हिन्दी भाषा में कई रचनायें जैन विद्वानों द्वारा की गईं। इनमें पद्य साहित्य, भक्तिगीत, कथाओं आदि के संग्रह प्रमुख हैं । धार्मिक विषयों एवं शील सम्बन्धी कई दृष्टान्तों का प्रयोग इनमें किया गया है । ( 46 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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