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________________ २०वीं शताब्दी में अनेक विषयों पर जैन विद्वानों ने हिन्दी में रचनाएँ की हैं। इनमें नाटक, एकांकी, उपन्यास, चरिताख्यान, कहानी, लघु लेख, जीवनी, निबन्ध और शोध समालोचना मुख्य रूप से लिखे गए हैं । जैन एवं जैनेतर विषयों विज्ञान एवं आधुनिक अन्य विषयों पर भी जैन विद्वान् बराबर लिखते आ रहे हैं । २०वीं शताब्दी का युग मुद्रण-युग होने से लोगों को प्रसार की अधिक सुविधा है । इस काल में भारत के प्रमुख हिन्दी भाषा से सम्बन्धित जैन विद्वानों में जिनविजय, ज्योतिप्रसाद जैन, जुगलकिशोर मुख्तार, अगरचन्द नाहटा, गोपालदास वरैया, चैनसुखदास, सुखसम्पतिराय भण्डारी, नेमिचन्द जैन, शोभाचन्द भारिल्ल, इन्द्रचन्द्र शास्त्री, दरबारीलाल कोठिया, जवाहरलाल जैन, नाथूराम प्रेमी, विनयसागर, कल्याण विजय, प्रेम सुमन, वीरेन्द्रकुमार, सागरमल जैन, नरेन्द्र भानावत, मोहन लाल मेहता, भगवान दास जैन, हुकमचन्द भारिल्ल, कल्याणमल लोढ़ा, कस्तूरचन्द बांठिया, डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, दौलतसिंह लोढ़ा आदि उल्लेखनीय हैं। खरतरगच्छ के सुमनजी, रामलालजी, विजयधर्मसूरि, विजयराजेन्द्रसूरि, कान्हजी स्वामी, आचार्य तुलसी, मुनि जयन्तविजय, मुनिमगनसागर, मुनि नथमल, मुनि रूपचन्द्र, जैन दिवाकर चौथमल, जवाहरलाल, आनन्दऋषि, गणेश लाल, हस्तीमल, नानालाल, अमर मुनि, मरुधरकेशरी मिश्रीलाल, मधुकर मुनि आदि के नाम प्रमुख रूप से लिए जा सकते हैं । शोध के क्षेत्र में मुनि जिनविजय का नाम जैन विद्वान् ही नहीं अपितु सारा देश याद करता रहेगा। ये मेवाड़ के रूपाहेली ग्राम में सं० १८८८ में जन्मे थे। राजपूत वंश में होते हुए भी वे बचपन से ही जैन यतियों और साधुओं के सम्पर्क में आये और जैन साधु के रूप में लम्बे समय तक दीक्षित रहे । सिंघी जैन ग्रंथमाला, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला के सम्पादक एवं भारत की कई संस्थाओं के मानद विशिष्ट सदस्य रहे थे। ये न केवल संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती के विद्वान् थे अपितु प्राचीन लिपियों, पुरातत्व एवं साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। इन्होंने भारतीय विद्या, जैन साहित्य संशोधक आदि कई शोधपूर्ण पत्र भी प्रकाशित किये हैं। श्री अगरचन्द नाहटा का नाम भी साहित्य के क्षेत्र में बड़ा उल्लेखनीय रहेगा। मैंने इनके साथ निरंतर कार्य किया है । सैकड़ों अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाशित करने का इन्हें श्रेय है। सुखसम्पतिराय भण्डारी ने भारत में देशी राज्य, ओसवाल जाति का इतिहास, जैन इतिहास, जैन दर्शन आदि पर अच्छा लिखा है। पं० काशीनाथ जैन मेवाड़ के निवासी थे। इनके द्वारा कई कथाएँ लिखी गई हैं। ये कथाएँ जैन साहित्य में प्रचलित कथाओं की रूपान्तर हैं। इनमें अभयकुमार, उत्तमकुमार, श्रावक कामदेव, चन्दनबाला, राजा हरिश्चन्द्र, पार्श्वनाथ, सुरसुन्दरी, चम्पक सेठ, राजा यशोधर चरित्र आदि उल्लेखनीय हैं। दौलतसिंह लोढ़ा की मृत्य् अल्पायु में हो गई थी। ये शिलालेख, इतिहास एवं पुरातत्व के अच्छे विद्वान् थे। ये कवि भी थे और कई कविताएँ भी लिखी थीं। इनकी पुस्तकों में थराद नगर के जैन शिलालेख, प्राग्वाट जाति का इतिहास, राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ, यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं। पं० भगवानदास गुजराती विद्वान् थे। इन्होंने हिन्दी में भी कई रचनाएँ शिल्पशास्त्र एवं ज्योतिष पर की थीं। आपने विजयधर्मसूरि द्वारा स्थापित यशोविजय जैन पाठशाला, बनारस में शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद अधिकांश समय जयपुर में ही रहे । ( 47 ) Jairt Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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