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________________ दिगम्बर विद्वानों में पद्मनाभ, ठक्कुरसी, छोहल, ज्ञानभूषण ब्रह्मबुचराज, ब्रह्मयशोधर भट्टारक, शुभचन्द्र आदि हुए हैं। इनकी कई रचनाएँ मिलती हैं । इनमें शुभचन्द्र अच्छे विद्वान् थे । इनके महावीरछंद, नेमिनाथछंद, दानछंद आदि बहुत प्रसिद्ध हैं । पद्यों के साथ गद्यों की भी कई रचनाएँ हुईं। इनमें बालावबोध बहुत मिलते हैं । हेमहंसगणि का षडावश्यकबालावबोध (१५०१ वि०सं०), भवभावनाबालावबोध (१५०१ वि०सं०), जिनसूरि रचित गौतमपृच्छा बालावबोध, संवेगदेवगण विरचित पिण्डविशुद्धिबालावबोध (१५१२ वि०सं०), धर्मदेवगणि विरचित षष्ठिशतकबालावबोध (१५१५ वि०सं०), आसचन्द्र विरचित कल्पसूत्रबालावबोध (वि० सं० १५१७), जयचन्द्रसूरि रचित चउसरणबालावबोध आदि उल्लेखनीय हैं । इस समय केवल जैन आगमों और अन्य शास्त्रीय पुराणों के अतिरिक्त अलङ्कार ग्रंथ "विदग्ध मुख मण्डन', 'वाग्भट्टालङ्कार', तथा छन्द ग्रंथ "वृत्त - रत्नाकर" की भाषा टीका भी बालावबोध के रूप में की गई है । १७वीं शताब्दी में मालदेव, पुण्यसागर, साधुकीर्ति, कुशललाभ द्वारा विरचित दोलामारू, माधवानल कामकंदला चौपाई राजस्थानी साहित्य की श्रेष्ठतम रचनायें हैं । आज भी सबसे ज्यादा प्रचलित किसी जैन कवि को रचनाओं में इनका स्थान है । समयसुन्दर बहुत प्रतिभा सम्पन्न थे । राजस्थानी साहित्य के एक बड़े गीतकार के रूप में इनका नाम है । अकबर द्वारा वे सम्मानित थे । अकबर के दरबार में आपने "अष्ठलक्ष्मो" का पाठ किया था । "राजानो ददते सौख्यम्" पद के दस लाख से भी अधिक अर्थ वाले वर्णन करके अकबर और उसकी सभा को आश्चर्यचकित कर दिया था । अकबर का जैनों से बड़ा सम्पर्क रहा । होरविजयसूरि एवं जिनचन्द्रसूरि तथा इनके शिष्य कई बार अकबर से मिले थे । यह काल जैनों की उन्नति का काल था । इन्हें राज्य मान मिला था । अमारि घोषणा के कई शासन पत्र भी मिले थे। कई विद्वानों के नाम गिनाए जा सकते हैं । यह काल राजस्थानी जैन साहित्य का अत्यंत उत्कर्षकाल रहा है । तपागच्छ के मेघविजय, विनयविजय, यशोविजय, खरतरगच्छ के धर्मवर्द्धन, जिनहर्ष, योगिराज, आनन्दघन, विनयचन्द्र, लक्ष्मीवल्लभ आदि विद्वान् अकबर के परवर्ती काल १८वीं शती में हुए थे। जिनहर्ष और जिनसमुद्र सूरि की समस्त रचनाएँ राजस्थानी भाषा में हैं । इनका परिमाण भो बहुत अधिक है । लोकाशाह परम्परा के भो कई जैन विद्वान् १७वों और १८वीं शताब्दी में हुए हैं । संत जयमाल एक प्रभावशाली वक्ता, कवि एवं लेखक थे । इनकी १८वीं की अधिक रचनाएँ मिलती हैं । इनमें चन्दनबालासज्झाय, लघुसाधुचन्दना, सोलहसतो की सझाय आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इनके अतिरिक्त कुशलजी, रायचन्दजी, चौथमल, दुर्गादास, आसकरण, जीतमल, रत्नचन्द्र आदि कई कवि हुये हैं । दिगम्बर परम्परा में भी कई अच्छे विद्वान् हुये । इनमें सुमतिकीर्ति, खडगसेन, दिलाराम, शुभचन्द्र, नथमल विलाला, थानसिंह, जोधराज कासलीवाल, दौलतराम कासलीवाल, सेवाराम पाटनी और वख्तराम शाह की कई रचनायें मिलती हैं । दिगम्बरों में साधुओं के साथ कई गृहस्थ श्रावक भी उल्लेखनीय विद्वान् हुये हैं । इनमें जोधराज गोदिका, ब्रह्मनाथू, नेमिचन्द्र सेवक, लोहट, अभयराज पाटनी, कुशलचन्द्र काला, किसनसिंह, बुधजन, उदयचन्द्र, पार्श्वदास आदि उल्लेखनीय हैं । ( 45 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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