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________________ आयुर्वेद साहित्य के जैन मनीषी २४३ (५) हरिश्चन्द्र - ये धर्मशर्माभ्युदय के रचयिता हैं । कुछ वैद्यक ग्रन्थों में इनका नाम भी आता है । कुछ विद्वान् इन्हें खरनाद संहिता के रचयिता मानते हैं । (६) शुभचन्द्र - - ११वीं शती के विद्वान् थे । इन्होंने ध्यान एवं योग के सम्बन्ध ज्ञानार्णव नामक ग्रन्थ लिखा है । यह भी आयुर्वेद के ज्ञाता थे । (७) हेमचन्दाचार्य -- ये योगशास्त्र के विद्वान् थे । (८) शोठल – ये ईसा की १२वीं शती में हुए हैं। इनका क्ष ेत्र गुजरात था । इन्होंने आयुर्वेद के अगदनिग्रह तथा गुणसंग्रह ग्रन्थ लिखे हैं, वे उपलब्ध हैं । प्रायोगिक व्यवहार के लिये उत्तम ग्रन्थ हैं । (९) उग्रादित्य-ये ८वीं शती के कर्नाटक के जैन वैद्य थे । धर्मशास्त्र एवं आयुर्वेद के विद्वान् थे । जीवन का अधिक समय चिकित्सक के रूप में व्यतीत किया है । ये राष्ट्रकूट राजा नृपतुरंग अमोघवर्ष के राज्य वैद्य थे। इन्होंने कल्याणकारक नामक चिकित्सा ग्रन्थ लिखा है । जो आज उपलब्ध है । इसमें २६ अध्याय हैं । इनमें रोग लक्षण, चिकित्सा, शरीर, अगदतंत्र एवं रसायन का वर्णन है । ये सोलापुर से प्रकाशित है। रोगों का दोषानुसार वर्गीकरण आचार्य की विशेषता है । इन्होंने जैन आचार-विचार की दृष्टि से चिकित्सा की व्यवस्था में मद्य, मांस और मधु का प्रयोग नहीं बताया है । इन्होंने अमोघवर्ष के दरबार में मांसाहार की निरर्थकता वैज्ञानिक प्रमाणों के द्वारा प्रस्तुत की थी और अन्त में वे विजयी रहे । कल्प, मांसाहार रोग दूर करने की अपेक्षा अनेक नये रोगों को जन्म देता है, यह इन्होंने लिखा है । यह बात आज के युग में उतनी ही सत्य है । जितनी उस समय थी । (१०) वीरसिंह - वे १३ वीं शती में हुए हैं । इन्होंने चिकित्सा की दृष्टि से ज्योतिष का महत्त्व लिखा है । वीरसिंहावलोक इनका गन्थ है । (११) नागार्जुन - इस नाम के कई आचार्य हुए हैं । जिसमें ३ प्रमुख हैं । जो नागार्जुन सिद्ध नागार्जुन थे, वे ६०० ए० डी० में हुए हैं । वे पूज्यपाद के शिष्य थे । उन्हें रशसात्र का बहुत ज्ञान था । इन्होंने नेपाल - तिब्बत आदि स्थानों की यात्रा की और वहाँ रसशास्त्र को फैलाया था । इन्होंने पूज्यपाद से मोक्ष प्राप्ति हेतु रसविद्या सीखी थी । इन्होंने (१) रस काच पुल और (२) कक्षपुर तम था सिद्ध चामुण्डा ग्रन्थ लिखे थे । भदन्त नागार्जुन और भिक्षु - नागार्जुन बौद्ध मतावलम्बी थे । (१२) पण्डित आशाधर – ये न्याय, व्याकरण, धर्म आदि के साथ आयुर्वेद साहित्य के भी मनीषी थे । इन्होंने वाग्भट्ट, जो आयुर्वेद के ऋषि थे, उनके अष्टांग हृदय ग्रन्थ की उद्योतिनी टीका की है, जो अप्राप्य है । इनका काल वि० सं० १२७२ है । ये मालव- नरेश अर्जुन वर्मा के समय धारा नगरी में थे। इनके वैद्यक ज्ञान का प्रभाव इनके " सागारधर्मामृत” ग्रन्थ में मिलता है। अतः ये विद्वान् वैद्य थे । इन्हें सूरि, नयविश्वाचक्षु, कलिकालिकादास, प्रज्ञापुंज आदि विशेषणों से कहा गया है । अतः इनके वैद्य होने में संदेह नहीं है । पण्डित जी ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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