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________________ हरिश्चन्द्र जैन समाज को पूर्ण अहिंसक जीवन बिताते हुए मोक्षमार्ग का उपदेश दिया है, शरीर, मन और आत्मा का कल्याणकारी उपदेश इनके सागारधर्मामृत में हैं । यदि श्रावक उसके अनुसार आचरण करे, तो रुग्ण होने का अवसर नहीं आ सकता है । २४४ (१३) भिषक् शिरोमणि हर्षकीर्ति सूरि - इनका ठीक काल ज्ञात नहीं हो सका है ये नागपुरीय तपागच्छीय चन्द्रकीर्ति के शिष्य थे और मानकीर्ति भी इनके गुरु थे । इन्होंने योगचिन्तामणि और व्याधिनिग्रह ग्रन्थ लिखे हैं । दोनों उपलब्ध हैं और प्रकाशित हैं । दोनों चिकित्सा के लिए उपयोगी हैं । इनके साहित्य में चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट्ट का सार है । कुछ नवीन योगों का मिश्रण है, जो इनके स्वयं के चिकित्सा ज्ञान की महिमा है । यह ग्रन्थ एक जैन आचार्य की रक्षा हेतु लिखा गया था । (१४) डा० प्राण जीवन मणिक चन्द्र मेहता - इनका जन्म १८८९ में हुआ । ये एम०डी० डिग्रीधारी जैन हैं । इन्होंने चरक संहिता के अंग्रेजी अनुवाद में योगदान दिया है । जामनगर की आयुर्वेद संस्था में संचालक रहे हैं । इस प्रकार आयुर्वेद साहित्य के अनेक जैन मनीषी हुए हैं। वर्तमान काल में भी कई जैन साधु तथा श्रावक चिकित्सा शास्त्र के अच्छे जानकार हैं किन्तु उन्होंने कोई ग्रन्थ नहीं लिखे हैं । मैंने कई जैन साधुओं को शल्य चिकित्सा का कार्य सफलता पूर्वक निष्पन्न करते हुए देखा है । जैन आचार्यों ने आयुर्वेद साहित्य का लेखन तथा व्यवहार समाज हित के लिये किया है । भारतवर्ष में जैन धर्म की अपनी दृष्टि है । उसमें जीवन को सम्यक् प्रकार से जीते हुए मोक्षमार्ग की ओर प्रवृत्ति करना होता है । इसलिये आहार-विहार आदि के लिए उन्होंने अहिंसात्मक समाज निर्माण का विचार एवं दर्शन दिया है । चिकित्सा में मद्य-मांस और मधु के प्रयोग को धार्मिक दृष्टि से समावेश नहीं किया है । वैदिक परम्परा के आचार्यों ने, जो आयुर्वेद साहित्य लिखा है, उससे जैन परम्परा के द्वारा लिखित आयुर्वेद साहित्य में उक्त दोनों परम्पराओं की अच्छी बातों के साथ निजी विशेषताएँ है । वे अहिंसात्मक विचार की हैं जिनका सम्बन्ध शरीर, मन और आत्मा से है । इसका फल समाज में अच्छा हुआ है । आज जैन आचार्यों ने, जो आयुर्वेद साहित्य लिखा है, उसके सैद्धान्तिक एवं व्यवहार पक्ष का पूरा परीक्षण होना शेष है। जैन समाज तथा शासन को इस भारतीय ज्ञान के विकास हेतु आवश्यक प्रयत्न करना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only प्राध्यापक रात आयुर्वेद विश्वविद्यालय जामनगर www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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