SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ हरिश्चन्द्र जैन कौशल प्राप्त किया था। यह पारद के विभिन्न प्रयोग करते थे। निम्न-धातुओं से स्वर्ण बनाने की क्रिया जानते थे। उन्होंने शालाक्यतंत्र पर ग्रन्थ लिखा है। इनके वैद्यक ग्रन्थ प्रायः अनुपलब्ध है किन्तु इनका नाम कुछ आयुर्वेद के आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में लिखा है और इनके आयुर्वेद साहित्य तथा चिकित्सा वैदुष्य की चर्चा की है। आचार्य श्री शुभचंद्र ने अपने "ज्ञानार्णव' के एक श्लोक द्वारा इनके वैद्यक ज्ञान का परिचय दिया है : अपा कुर्वन्ति यद्वाचः कायवाक् चित्तसम्भवम् । कलंकभंगिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते ॥ यह श्लोक ठीक उसी प्रकार का है जैसा पतञ्जली के बारे में लिखा है : योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन । याऽपा करोत् तं वरदं मुनीनां पतञ्जलिं प्राज्जलिरानतो सिम् ।। ऐसा लगता है कि पूज्यपाद पतञ्जलि के समान प्रतिभाशाली वैद्यक के ज्ञाता जैनाचार्य थे। कन्नड कवि मंगराज वि०सं० १४१६ में हुए हैं, जिन्होंने खगेन्द्रमणीदर्पण, आयुर्वेद का है। उन्होंने लिखा है कि मैंने अपने इस ग्रन्थ का भाग पूज्यपाद के वैद्यक ग्रन्थ से संग्रहीत किया है। इसमें स्थावर विषों की प्रक्रिया और चिकित्सा का वर्णन है। बौद्ध नागाजन से भिन्न एक नागार्जुन और थे, जो पूज्यपाद के बहनोई थे। उन्हें पूज्यपाद ने अपनी वैद्यक विद्या सिखाई थी। रसगुटिका, जो खेचरी गुटिका थी, का निर्माण भी उन्हें सिखाया था। पूज्यपाद रसायनशास्त्र के विद्वान् थे । वे अपने पैरों में गगनगामी लेप लगा कर विदेह क्षेत्र की यात्रा करते थे। ऐसा उल्लेख कथानक साहित्य में मिलता है। दिगम्बर जैन साहित्य के अनुसार पूज्यपाद आयुर्वेद साहित्य के प्रथम जैन मनीषी थे। वे चरक, एवं पतंजलि की कोटि के विद्वान् थे। जिन्हें अनेक रसशास्त्र,योगशास्त्र और चिकित्सा की विधियों का ज्ञान था। साथ ही शल्य एवं शालाक्य विषय के विद्वान् आचार्य थे। (२) महाकवि धनंजय--इसका समय वि० सं० ९६० है। इन्होंने 'धनंजय निघंटु' लिखा है, जो वैद्यक शास्त्र का ग्रन्थ है। ये पूज्यपाद के मित्र एवं समकालोन थे, जैसा कि श्लोक प्रकट करता है प्रमाणमकलंकस्य पूज्यपादस्य लक्षणं । धनंजयकवैः काव्य रत्नमयपश्चिमम् ।। इन्होंने विषापहार स्तोत्र लिखा है, जो प्रार्थना द्वारा रोग दूर करने के हेतु लिखा गया है । (३) गुणभद्र--शक संवत् ७३७ में हुए हैं, इन्होंने 'आत्मानुशासन' लिखा है, जिसमें आद्योपान्त आयुर्वेद के शास्त्रीय शब्दों का प्रयोग किया गया है और फिर शरीर के माध्यम से आध्यामिक विषय को समझाया है। इनका वैद्यक ज्ञान वैद्य से कम नहीं था। (४) सोमदेव--ये ९वीं शती के आचार्य हैं। यशस्तिलक चम्पू में स्वस्थवृत्त का अच्छा वर्णन किया है। उन्हें वनस्पति शास्त्र का ज्ञान था, क्योंकि इन्होंने शिखण्डी तांडव वन की औषधियों का वर्णन किया है। ये रसशास्त्र के ज्ञाता थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy