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________________ महान् मानवरत्न भगवानदास शोभालाल जैन, सागर, (म० प्र०) ज्ञान समान न आन जगतमें, कोऊ सूखको कारण । यह परमामृत जन्म-जरा-मृत्यु, रोग निवारण । सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र जी शास्त्री, न्यायतीर्थका अखिल भारतीय स्तर पर अभिनन्दन सम्पूर्ण जैन समाजके लिए बड़े ही गौरवकी बात है। आप जैन सिद्धान्तके मुर्धन्य विद्वान हैं। उनकी गणना भारतके उच्चकोटिके विद्वानोंकी शृङ्खलाको सुशोभित कर रही है। 'गुणोंकी सर्वत्र पूजा हुआ करती है ।' इसी भावोक्तिपूर्ण तथ्यको लेकर, जैन-अजैन जो भी आपसे परिचित हैं, सभीको उनकी गुण गरिमापर गर्व है ।। पण्डितजी हिन्दी-संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओंके ज्ञाता, जिनवाणी माताके अनन्य उपासक, सरस्वतीके वरदपुत्र, विद्यावारिधि, जैनधर्म, दर्शन एवं साहित्यके प्रकांड विद्वान, साहित्य मनीषी, सफल सम्पादक, ग्रन्थकार, रचनाकार, टीकाकार तथा जैन धर्मके गूढ़ रहस्योंके ज्ञाता, ओजस्वी वक्ता एवं प्रवचन कर्ता है । वह साहित्यकी विविध-विधाओंसे श्री-सम्पन्न हैं। पण्डितजीकी सस्थागत, सतत साहित्यिक सेवाएँ सदैव चिर स्मरणीय रहेंगी। उनके जीवनका अधिकांश समय अध्ययन, मनन एवं चिन्तनमें व्यतीत हुआ और वही क्रम अभी भी उनके जीवनके दैनिक कार्यों में समाहित है । इससे बढ़कर उनके जीवनकी विलक्षणता और क्या हो सकती है ? वास्तव में वह सादा जीवन उच्च विचारके प्रबल पोषक और ज्ञानगंगामें अवगाहन करनेवाले महान् मानव रत्न हैं। धर्मके प्रचार एवं प्रसारमें उन्होंने अपना सारा जीवन ही समाजको समर्पण कर दिया है और इस उक्तिको सिद्ध कर दिया है कि ज्ञानके समान सुखका साधक अन्यत्र मिलना संभव नहीं है। इन्हीं आत्मिक प्रसूनोंके द्वारा हम श्रद्धेय पण्डितजीके सम्मानमें अपनी भाव वन्दना समर्पित करते हुए श्रीवीर प्रभुसे उनके स्वस्थ जीवन एवं दीर्घायुकी मंगल कामना करते हैं । महाविद्वान् पण्डितजी सत्यन्धरकुमार सेठी, उज्जैन, (म० प्र०) वास्तव में जैन-समाजके महाविद्वान, चिन्तक और मनीषी पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री सिद्धान्ताचार्य बनारसका अखिल भारतीय स्तपर अभिनन्दन एक अनुकरणीय प्रयास है। मैं इस अभिनन्दनको एक आदर्श अभिनन्दन मानता हैं। यह ऐसे व्यक्तित्वका अभिनन्दन है जिसने अपने जीवनका हर क्षण माँ भारतीकी सेवामें, उसकी साधनामें अर्पित किया है। ऐसा अभिनन्दन समाज व राष्ट्र के लिए गौरवकी बात है। __ भारत देश सदैव विद्वानोंका गढ़ रहा है। ये समाजके एक सजग प्रहरी होते हैं। इनके पवित्र और आदर्श जीवनसे समाज और राष्ट्र के जीवनका निर्माण होता है। प्राचीन भारतमें जैन समाजमें हरयुगमें ऐसे विद्वान होते रहे हैं जिनके चिन्तनसे और आदर्श साहित्य-सर्जनसे भारतीय राष्ट्रको आदर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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