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________________ उल्लेखनीय सेवायें हुई हैं। उनमें महाविद्वान् पं० टोडरमलजी, जयचन्दजी, पं० सदामुखजी, द्यानतरायजी, भागचन्दजी, टेकचन्दजी आदिके नाम विशेष उल्लेखनीय है। वर्तमान पीढ़ीमें भी अनेक विद्वान पैदा हए हैं जिनमें पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीका उच्चतम स्थान है। पण्डितजीसे मेरा साक्षात् परिचय बहुत कम हआ है, लेकिन उनके आदर्श जीवनसे और उनकी विद्वत्तासे मैं काफी प्रभावित हूँ। मैं जानता हूँ कि उन्होंने जैन-साहित्य व समाजके लिए जो सेवायें अर्पित की हैं वे इतिहासके पन्नोंमें स्मरणीय रहेंगी। पण्डितजी समाजमें एक निर्भीक, स्पष्टवादी एवं निःस्वार्थ वक्ता हैं। उनकी वाणीमें ओज है, आदर्श है। वे समाजमें एक ऐसे विद्वान है जिन्होंने कभी भी अपने जीवनको किसी भी व्यर्थक विवादमें नहीं उलझाया है। वे एक विशुद्ध आगमपंथी विद्वान् हैं। उनके विचार पंथभेदोंसे ऊपर उठे हुए हैं। वे नहीं चाहते कि समाजमें इस तरहके विवाद पनपें । वे एक वीतराग मार्गके पोषक हैं और शिथिलाचारके घोर विरोधी हैं। वे चाहते हैं कि जैनधर्म आदर्श बना रहे। उनके विचारोंमें जैनधर्म एक आडम्बरविहीन धर्म है । पण्डितजीकी धार्मिक आस्था अडिग है। वर्तमान साधु संस्थामें भी उनकी आस्था है, लेकिन उनमें व्याप्त शिथिलाचारको वे किसी भी कीमतमें सहन कर लेनेको तत्पर नहीं है। जैनसन्देश पत्रके आप से सम्पादक हैं। आपकी सम्पादकीय विचारधारा हमेशा समाजको सही मार्गदर्शन देती रही है। जैनसन्देश आदर्श सेवा एवं उच्चकोटिका पत्र माना जाता है । इसका शोधांक तो आज शोधके विद्यार्था और विद्वानोंके लिए प्राणस्वरूप है। इस पत्र की नीति वास्तवमें आपहीके कारण निष्पक्ष रही है। आपने कभी भी इस पत्रमें किसी विवादको महत्त्व नहीं दिया और न स्वयं कभी किसी विवादमें पड़े। सोनगढ़के पूज्य कानजी स्वामीको लेकर आज समाजमें काफी विवाद है। इसको लेकर आप पर भी कभी-कभी आक्षेप किये जाते हैं। लेकिन जहाँतक मेरा ख्याल है, आपने अपने आपको कभी भी इस विवादमें नहीं उलझाया । सही बातका समर्थन करना पक्षपात नहीं कहलाता। सोनगढ़के सम्बन्धमें भी आपने वहाँपर होनेवाले विशाल समारोहमें भी कुछ ऐसी बातोंका डटकर विरोध किया था जो उन्होंने वहाँपर विपरीत रूपमें देखी थी । सहारनपुर में मैंने स्वयं ही कानजी स्वामीके सम्बन्ध पण्डितजीसे चर्चा की थी। तब भी उन्होंने मुझे यही कहा था कि हमारा समर्थन किसी भी व्यक्ति विशेषका नहीं है, हमारा समर्थन सिर्फ वीतरागमार्ग और आगमका है। कई बार उनके विचारसे मैं भी सहमत नहीं होता, तब मैं बराबर उनसे पत्र व्यवहार करता हूँ और मुझे उनसे स्पष्टतया निर्भीकता पूर्वक समाधान मिलता है। इससे मालूम होता है कि वे अपने विचारोंपर पूर्णतः दृढ़ रहते हैं। उनकी स्पष्टवादिता और निर्भीकतासे मैं काफी प्रभावित होता हूं। पण्डितजीने कितने ही मौलिक और सिद्धान्तग्रन्थोंका सम्पादन किया है और वर्तमान पीढीको मार्ग दर्शन देनेके लिये नव निर्माण भी किया है। आपके द्वारा रचित ग्रन्थोंमें जैनधर्म नामा ग्रन्थका विशिष्ट स्थान है। यह आज देश और विदेशमें मान्यता प्राप्त है। अन्य ग्रन्थ भी पठनीय और मननीय है। आपको जन्म देनेका सौभाग्य उत्तरप्रदेशको मिला है लेकिन आज वे इतने सार्वभौमिक है कि हर प्रान्तका व्यक्ति आपको अपना मानता है और अनुभव करता है कि आप हमारे ही हैं। स्याद्वाद महाविद्यालय बनारससे तो आप वर्षोंसे सम्बन्धित रहे ही हैं लेकिन आपकी जैन समाजकी अन्य संस्थाओंके लिये भी उल्लेखनीय सेवायें रही हैं। समाज सेवा भी हमेशा आपकी निःस्वार्थ रही है। महावीर जयन्ती जैसे समारोहों, दशलक्षण पर्व जैसे महान पर्वो में धर्म प्रचारार्थ आप पधारते हैं लेकिन आपने कभी भी समाजसे -४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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