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________________ प्रबंध समितिने संपूर्ण आयोजन हेतु ३८००० रु० का प्रारम्भिक वजट स्वीकार किया । यह मूल्यशुद्धि, मार्ग व्यय वृद्धि तथा अन्य कारणोंसे सगभग २०% तक अधिक जा रहा है। इसकी पूर्ति मे स्वागत समितिकी सदस्यताके रूपमें स्याद्वाद विद्यालय, काशीके भूतपूर्व २७ स्नातकोंने ५९००००, तथा स्याद्वाद महाविद्यालय, भारतीय ज्ञानपीठ, जीवराज ग्रंथमाला, दि० जैन विद्वत् परिषद्, महावीर ट्रस्ट, ( इन्दौर), आदिनाथ ट्रस्ट (आरा), दि० जैन संघ (मथुरा) के समान संस्थानोंने ७६०००० का सहयोग किया है । इस कार्य में श्रेष्ठिवर्ग के सहयोग के बिना तो काम ही कैसे चल सकता था ! श्री मिश्रीलालजी काला, कलकत्ता ने ५०००'०० रु० देकर हमें अत्यन्त ही प्रोत्साहित किया है । अन्य अनेक व्यक्तियोंसे भी हमें चार अंकोंकी राशि मिली है। हमें काशी, कारंजा, बम्बई, कलकत्ता, अहमदाबाद, जबलपुर, कटनी, मुजफ्फरनगर, अजमेर, कुरवाई, विदिशा, भोपाल, शहडोल, इन्दौर और सतना आदि नगरोंसे . १८००००० का सहयोग प्राप्त हुआ है । इस सहयोगने हमारा भार अत्यन्त लघुतर किया । यहीं नहीं, दिल्ली में आयोजन हेतु अहिंसा इन्टरनेशनलके सचिव भाई सतीशकुमार जी ने लगभग ९००००० की राशि एकत्र की है और अनेक सहयोगियोंने अन्य प्रकारसे भी सहयोग दिया । हमने यह प्रयत्न किया है कि इस सार्वजनिक राशिका मितव्ययिताके साथ सदुपयोग हो । अपने इन सभी सहायकोंकी सूची परिशिष्टमें दी जा रही है । समिति समक्ष अभिनन्दन समारोहके केन्द्रीय स्थानमें आयोजित करनेकी प्रमुख समस्या थी । अपनी यात्राओं के दौरान समितिके मंत्रीको दिल्ली में भाई सतीशकुमार जी मिले । उन्होंने सहर्ष इस समारोह को न केवल दिल्ली में आयोजित करनेका प्रस्ताव स्वीकार किया, अपितु एतदर्थ आवश्यक व्ययके लिए भी समितिको आश्वस्त किया । उन्होंने दिल्लीमें ६१ सदस्योंकी आयोजन समिति बनाई, जिसके अध्यक्ष प्रसिद्ध समाजसेवी श्री सुलतान सिंह वाकलीवाल हैं । भाई सतीशकुमार जी इस समिति के महामंत्री तथा हमारी समिति के सहमंत्री हैं । उनके अथक प्रयत्नोंसे ही हमारा यह आयोजन इतनी गरिमामय रीति से दिल्ली में सम्पन्न हो सका । समिति मन्त्रीने इस योजनाकी सफलता हेतु अनेक स्थानोंकी लगभग २३००० किमी० की यात्रा की एवं शताधिक व्यक्यिोंसे सम्पर्क किया । समितिको प्रारम्भमें ही पं० माणिकचन्द्रजी चवरे, सिंधई धन्यकुमारजी, श्री शीतल प्रसादजी मुजफ्फरनगर, श्री बालचन्द्र देवचन्द्र शाह, बम्बई, डॉ० कछेदीलाल जैन, शतडोल तथा नीरज जैन सतनाके समान प्रेरक सहयोगी और मार्गदर्शक मिले। एक मूक और आशीर्वाद भरी मुस्कुराहट तो पहलेसे ही हमारे साथ थी । इनके विपर्यासमें अनेक स्थानों पर उन्हें पण्डितोंके प्रति घृणाभाव व आलोचनाओंके दर्शन हुए। उन्हें इनके कारण समाजमें पड़नेवाली दरारोंके रूप भी प्रकट हुए । वस्तुतः समितिने आयोजनके दौरान जैसी स्थितियोंका अनुभव किया, वे कल्पनातीत हैं । 'अपने हुए विराने' की स्थिति भी प्रतीत होती रही। फिर भी, पूज्य पण्डितजीके प्रति जिस श्रद्धा और आदरभावके दर्शन हुए, , वे प्रेरक ही बने रहे । यह अचरज की बात रही कि पण्डितोंके कारण समाज में नये वर्गभेद प्रकट हो रहे हैं । समितिका विश्वास है कि भूतकालके समान वर्तमानमें भी विद्वान् आगम या शास्त्रोंके अर्थकार और व्याख्याकार हैं । कभी-कभी ये व्याख्याएँ भिन्न भी हो सकती हैं। पर विद्वान् कभी नहीं चाहता कि इनके कारण समाज में विभेद हो । वस्तुतः सैद्धान्तिक तत्वचर्चाने सदैव मतवादोंको जन्म दिया है पर उससे समाज वर्गित हुई दिखी, यह बीसवीं सदीके उत्तरार्ध की ही घटना है । उपरोक्त स्थिति के कारण हमारे धर्म और समाजकी प्रभावकता एवं व्यावहारिकता पर जो प्रभाव पड़ रहा है, उसका कटु अनुभव पक्षातीत समाज सेवियों एवं Jain Education International - ८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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