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________________ समितिकी ओरसे सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री जैन और जैनेतर विद्वत्-समाजमें बहुश्रुत हैं । उत्तर प्रदेशके एक अज्ञात ग्राममें जन्मे तथा काशीमें शिक्षा-दीक्षा पाये पंडितजी ने अपने अध्ययन-अध्यापनकी आधी सदीमें न केवल अपनी भारत व्यापी सहस्राधिक शिष्य मंडलीके माध्यमसे जैनधर्मकी ज्योतिको प्रज्वलित रखने में योगदान किया है, अपितु अपनी भाषण कला एवं विचारपूर्ण निष्पक्ष लेखनीसे पंडित समाजकी प्रतिष्ठाको भी प्रतिष्ठित बनाये रखा है । आपके गौरवपूर्ण अभिनन्दनका विचार समिति के हुआ था जब जबलपुरकी स्थानीय समितिने मध्यप्रदेशके एक विद्वद्वत्नको अभिनंदित थी । इसके सम्पन्न होने पर जब इस ओर ध्यान दिया गया, तब ज्ञात हुआ कि काशीकी जैन विद्वन्मंडली न केवल अपने विवादों में उलझी हुई है, अपितु उसके कारण उसकी सामाजिक श्रद्धामें भी ह्रास होने लगा है । इस स्थिति से अनेक स्याद्वादी विद्यार्थी भी विचलित होकर कहने लगे — इस स्थिति में कब सुधार होगा ? भट्टारक श्री चारुकीर्तिजीके आशीर्वाद तथा विद्वत् परिषद्के प्रयत्नसे १९७८ में विद्वानोंका पुनर्मिलन हुआ । यह सुखद अवसर ही वर्तमान आयोजनका बीजांकुरण बन गया । इस विषय में कोई चालीस भूतपूर्व 'स्याद्वादियों' एवं चौबीस समाजके प्रतिष्ठित विद्वानों व व्यक्तियोंसे सम्पर्क किया गया। सभी ने खुले दिल से अपना समर्थन और सहयोग देनेका वचन दिया। इस सम्पर्कके दौरान ही यह ज्ञात हुआ कि पूर्व में भी स्व० डा० नेमचन्द्र ज्योतिषाचार्य तथा डा० ज्योतिप्रसाद जैन और उनके सहयोगियोंने अनेक वर्षों पूर्व ऐसा ही विचार किया था। पर वह किन्हीं कारणोंसे मूर्तरूप नहीं ले सका। इन सभी सज्जनोंसे भी हमें प्रेरक सहयोग मिला । वस्तुतः ये प्रयत्न ही हमारे आयोजनकी आधारशिलाके रूपमें काम आये । समितिका वास्तविक कार्य बसंत पंचमी, १९७९ से प्रारम्भ हुआ । इसने अपनी द्विचरणी योजना बनाई, (१) अभिनंदन ग्रन्थ तैयार करना और (२) एक अखिल भारतीय संगोष्ठीके माध्यमसे इसे समर्पित करना । प्रारम्भिक चरणमें समितिको भारतके बारह प्रमुख विद्वानोंसे परामर्शदाता के रूपमें सहयोग देनेका बचन मिला। इससे प्रेरित होकर सप्त-सदस्यीय संपादक मंडलका गठन किया गया जिसमें डा० वागीश शास्त्री, निदेशक अनुसंस्थान संस्थान, संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, काशीके समान अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् भी सम्मिलित हुए । इन सभी के सहयोग से प्रस्तुत सप्त खंडी ग्रन्थ तैयार किया गया है | समितिने इसे स्मरणीय एवं संग्रहणीय बनानेका यत्न किया है । सुधी पाठक एवं विद्वद्-वर्ग ही हमारे इस विश्वासकी पुष्टि कर सकते हैं । द्वितीय चरण में, हमने आयोजन हेतु प्रबंध समितिका गठन किया । इसमें हमें कुछ समय लगा है । इसके ३१ सदस्य मुख्यतः मनोनीत ही किये गये हैं । इसमें विद्वदु-वर्ग, श्रेष्ठि वर्ग, संस्थाएँ एवं समाजसेवीसभी कोटिके व्यक्ति हैं। सभी ने समय-समय पर हमारा, तन, मन और धनसे सहयोग किया है। समिति के सदस्योंकी सूची पृथक से ही दी गई है । इस समितिकी विशेषता सह है कि इसमें जैन समाज के प्रमुख संप्रदायों और संस्थाओंके प्रतिनिधि सम्मिलित हैं। यह एक अभूतपूर्व अवसर है जब इतनी संस्थाएँ एक साथ किसी आयोजन में सक्रिय रूपसे सहयोग कर रही हैं । Jain Education International 151 मंत्रीके मनमें उसी समय करने की योजना बनाई For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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