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________________ ५४ . सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्य जैन साहित्याराधनामें समर्पित • श्री सुरेश जैन I. A. S., संचालक, लोक-शिक्षण, भोपाल • श्रीमती विमला जैन, मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी, भोपाल हमें यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि सकल जैन समाजने सरस्वतीके वरदपुत्र श्रद्धेय पं० बंशीधर जी व्याकरणाचार्यको अभिनन्दन-ग्रंथ भेंट करने का निर्णय लिया है । यह अत्यन्त ही सराहनीय कार्य है। __ श्रद्धय पंडितजी विगत साठ वर्षकी सुदीर्घ समयावधिसे अतुलनीय निष्ठा, लगन और रुचिसे जैन साहित्याराधनामें समर्पित हैं । वे अभी भी जिनवाणीकी साधनामें अनवरत संलग्न है। यह उनकी जीवटता एवं कर्मठताका प्रतीक है। गुरुणां गुरुकी यह साधना तथा योगदान निश्चित ही स्तुत्य है। उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ समूचे समाजकी एक अद्वितीय एवं अमूल्य धरोहर हैं । भगवान्से प्रार्थना है कि पण्डितजी स्वस्थ और जागरूक रहकर सतत रूपसे अपना आशीर्वाद हमें प्रदान करते रहें। श्रद्धा-सुमन समर्पित हैं •पं० गुलजारीलाल जैन, शास्त्री, सागर पूज्य काकाजीके विषयमें कुछ भी लिखना सूर्यको दीपक दिखाना होगा, क्योंकि समाजमें चाहे वह बुद्धिजीवी हो या व्यवसायी सभी केवल 'बोना वाले पं० जी ऐसा कह देनेपर समझ ही नहीं जाता बल्कि वह भाव-विभोर हो जाता है और अगर रिश्तेदार हुआ तो गर्वका अनुभव करने लगता है। मुझे गर्व इससे भी अधिक है क्योंकि जिस मिट्टीमें उनका जन्म हुआ उसी मिट्टी में मेरा जन्म हुआ है और मेरे पितामह एवं पिताजीसे वैसा ही संबन्ध रहा जैसा कि किसी कुटुम्बी या भाई-भाई में रहता है । पूज्य काकाजीकी विशेषता है कि वे भटा-भाजी छोड़नेके उपदेशक पंडितजी नहीं, वरन् धर्मतत्त्वके वेत्ता और उसके उपदेशकके रूपमें हैं इसके अतिरिक्त राजनैतिक जीवन गौरवपूर्ण है। सामाजिक जीवन आपका कुटुम्बीजनोंके उठानेमें तो लगा और लग रहा है। प्रत्युत रिश्तेदारोंको ऊपर उठानेका प्रयत्न किया। समाजकी कुरीतियोंसे सदैव आपका संघर्ष चलता रहा व चल रहा है। जब दस्सा पूजाधिकारका प्रबल समाज में आया तो उसका आपने पुरजोर समर्थन किया। हमें प्रसन्नता है कि समाज आपको अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करने जा रही है। आपके पादकमलोंमें हमारे श्रद्धासुमन अर्पित हैं । पण्डित परम्पराके मूर्धन्य मनीषी • डॉ० ऋषभचन्द्र जैन फौजदार, आरा पण्डित-परम्पराके पोषण, जिनवाणीकी सेवा तथा प्रचार-प्रसारमें पं० बंशीधर जी व्याकरणाचायंका महनीय योगदान है। चौरासी वर्षकी अवस्था होनेपर भी आय सतत चिन्तन, मनन और लेखनमें संलग्न रहते हैं। प्राचीन पद्धतिके विद्वान् होते हुए भी पण्डितजीका चिन्तन किसी आधुनिक विचारकसे कम नहीं है । उनकी राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक सेवाओंके उपलक्ष्यमें अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करनेका निर्णय स्तुत्य है तथा पण्डितजी को यह समाज और विद्वत् समुदायके लिए विशेष गौरवकी बात है । मान्य पण्डितजीके दीर्घायुष्यकी कामनाके साथ उन्हें मेरी हार्दिक मंगल-कामनाएँ हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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