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________________ सुमनाञ्जलि देते हैं पं० पूर्णचन्द्र 'सुमन' दुर्ग जनक मुकुन्दलाल, मातृ राधा के सलौने लाल ग्वाल बाल नहीं फिर भी बंशीधर कहाते हो। प्रकृति से सुरम्य सोरई ग्राम में जन्म लेकर वंशी की तो बात क्या अब वीणा वाले कहाते हो। स्याद्वाद, महाविद्यालय, वाराणसी में अध्ययन को पूज्य सन्त वर्णीजी के सानिद्ध में रहे हो। अनवरत वर्ष एकादश-अध्ययन कर __ शास्त्री न्यायतोर्थ व्याकरणाचार्य कहाये हो ॥ आपके चिन्तन और लेखन की तो कोई मिसाल नहीं मौलिक, दार्शनिक, सैद्धान्तिक, लेख सभी प्रमाण हैं। निश्चय और व्यवहार खानिया तत्त्व चर्चा ___ तत्त्व मीमांसा की मीमांसा आदि महान् है ॥ देश की आजादी में भी आप तनमन से जुटे जेलों के कष्टों को कुछ भी नहीं माने हैं। . नागपुर, सागर, अमरावती-कारागार उन्नीससौ वियालीस के आन्दोलन जाने हैं ॥ समाज की सेवा के कार्य भी अछूते नहीं। अनेक संस्थाओं के मंत्री सभापति रहे हैं। विद्वद् परिषद् वर्णी ग्रंथमाला-आदि के महत्त्वपूर्ण संचालन के--गौरव आप बने हैं। समाज-सुधारक, पत्रकार, दार्शनिक समन्वयवादी-स्याद्वादी वक्ता हैं। ओजस्वी-सरल-मधुरवाणी से ओतप्रोत जैन सिद्धान्त के प्रखर-प्रवक्ता आपका स्वभाव इतना सरल और प्रभावक है सहज ही सभीजन-आपके हो जाते है। ज्ञान के तो इतने अगाध भण्डार हैं आतिथ्य सेवा में बेजोड़ पाते हैं। इतनी वृद्धवय में भी लेखनी को विराम नहीं अनवरत-सैद्धान्तिक गुत्थियाँ सुलझाते हैं। ऐसे महान् महनीय विज्ञ पं० जी के चरणों में "सुमन" सुमनाञ्जलि देते हैं। चाँद और सितारों का जबतक निवास रहे। तबतक चिरायु रहें-ऐसी शुभ कामना भाते है । - महत्वपूण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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