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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएँ : २५ प्रतिष्ठान एक ऐसी गौरवशाली परम्परा लिए है कि एक निश्चित लाभांश लेकर एक ही दामसे वस्त्र विक्रय करते है तथा एक पैसेकी टैक्स चोरी नहीं करते । ३. जोवनके प्रति एक रचनात्मक दृष्टि है। आपका कहना है कि यदि जीवनको पूर्ण नियम और संयमसे बिताया जाय तो दीर्घायु उपहार में मिल जाती है। यही कारण है कि आपका आहार, बिहार, अध्ययन-लेखन, शयन सभी दैनिक कम घडीको सुईयाने बँधा स्वानुशासित है। ४. सोनगढ़की एकान्त आँधीमें बड़े-बड़े नामधारी पण्डित ढलक गये लेकिन आर्ष परम्परा और स्याहाद-अनेकान्तके इस सजग प्रहरीने अपनी लेखनी उठाकर उस एकान्त विचारधाराका डटकर सैद्धान्तिक खण्डन किया और एक सशक्त साहित्यका प्रणयन कर दिशा-दृष्टि दी। __यह सुयोग ही समझना चाहिए कि आपके सुयोग्य भतीजे जैन जगतके ख्यातिप्राप्त विद्वान पं० डॉ० दरबारीलालजी कोठियाने बनारससे बीनाको अपनी कर्मस्थली बनाया और आपके परिवारमें दुध-पानीकी भाँति मिलकर समाज-सेवा एवं साहित्य साधनाको हो पूर्ववत् अपनाया। मै पंडितजीके दीर्घायकी मंगल कामना करते हए आपकी लेखनीसे प्रसूत अन्य साहित्यिक । आध्यात्मिक ग्रन्थोंके प्रणयनको आशा करता हूँ ताकि वे आनेवाले युगकी चुनौतियोंका सामना कर सकें और आर्ष परम्पराके संरक्षणके प्रतिमान बन सकें । पाण्डित्यकी प्रतिमति • पंडित विमलकुमार सोरया, सम्पादक-वीतराग वाणी, टीकमगढ़ वर्तमान शताब्दीके प्रथम श्रेणीके विद्वानोंमें सिद्धान्ताचार्य विद्वतरत्न पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य, बीनाका नाम आदरके साथ लिया जाता है। पंडितजीके सम्मानमें जो ग्रंथ आज प्रकाशित किया जा रहा है वह आजसे २० वर्ष पूर्व ही प्रकाशित होना चाहिए था। सैद्धान्तिक ज्ञानकी परिपक्वता व्याकरण और न्यायकी दीवाल पर आधारित होती है। श्रद्धेय पण्डितजी अभिधाओंके प्रतिभा सम्पन्न अधिकारी विद्वान हैं यही कारण है कि जैन दर्शनके परिप्रेक्ष्य में उनका प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगका ज्ञान न्याय और व्याकरणकी तराजू पर सत्य रूपमें घटित हुआ । पण्डितजीका सैद्धांतिक ज्ञान जितना अथाह है दर्शनकी गहराई भी उतनी अलौकिक है। सामान्य श्रावकसे लेकर विद्वान तकके बीचमें आपकी आध्यात्मिक चर्चामें अपना मौलिक चिन्तन अपना तथ्यपूर्ण सत्य और अपनी विचारण सिद्धान्तके आलोकमें पूर्णतः प्राणवान देखी गई। विद्वत्ता स्वरूप व्यक्तिकी प्रवृत्ति से अनुभत किया जाता है। एक बार मैं और श्रद्धेय पण्डितजी एक साथ अशोकनगरमे किसी धार्मिक प्रसंग पर आमंत्रित किए गए। सौभाग्यकी बात थी कि जिस गाडीसे मैं अशोकनगर जा रहा था उसी गाड़ी और उसी डिब्बेमें श्रद्धय पण्डितजी भी थे। बड़ी प्रसन्नताके साथ हम पण्डितजीसे चर्चा करते हए जा रहे थे। अशोकनगर स्टेशन आते ही समाजके शताधिक व्यक्ति बडी-बडो मालाएँ-ध्वजाएं लिए हम दोनों को लेने बैण्ड-बाजों सहित आये हुए थे। जब पण्डितजी ने यह तमाशा प्लेटफार्म पर ट्रेनके पहुँचते हुए देखा तो मुझसे बोले सोरया जी आप गाड़ीसे नीचे उतरो मैं बाथरूममे शद्धि करके आता है। यह बात मैं समझ नहीं पाया और मैं जैसे ही प्लेटफार्म पर डिब्बेसे उतरा लोगोंने आगवानी करके मालायें पहनाना शुरू किया। उस भीड़ में २/४ मिनटके लिए भूल गया कि पण्डितजी भी गाड़ीसे उतरकर आने वाले है । जबकि पण्डितजी पिछले दरवाजेसे उतरकर पीछेसे अपना बैग लिए चुपचाप प्लेटफार्मसे आगे निकल गये । ट्रेन चलने लगी मुड़कर देखा कि पण्डितजी नहीं दिखे-मैने स्वागतकर्ताओंसे पण्डितजीके आने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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