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________________ १२४ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ ग्मिध्यात्वके उदयमें नोकर्मभूत हृदयके अवलम्बनसे होनेवाले व्यवहार सम्यग्मिथ्यात्वसे प्रभावित रहता है । इस अविरतिका उत्पादन प्रथम, तृतीय और चतुर्थ गुणस्थानोंमें व्यवहार सम्यग्दर्शन और व्यवहारसम्यग्ज्ञानपूर्वक ही होता है। द्वितीय गुणस्थानमें मिथ्यात्वकर्मके उदयका अभाव रहनेके कारण मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञानका अभाव हो जानेसे यद्यपि मिथ्याचारित्रका अभाव पाया जाता है तथापि अनन्तानुबन्धी कर्मका उदय रहने के कारण नोकर्मभूत मनके अवलम्बनपूर्वक जीवको भाववतीशक्तिके परिणमनस्वरूप राग या द्वेषपूर्वक अनैतिक आचाररूप संकल्पीपापके रूपमें अविरति वहाँ भी पायी जाती है। व्यवहारसम्यग्दर्शन और व्यवहारसम्यग्ज्ञानका अभाव रहनेके कारण आरम्भी पापरूप अविरतिका वहाँ अभाव ही माना जा सकता है। चतुर्थ गुणस्थानवी जीवमें आरम्भी पापरूप अविरति तो रहती ही है परन्तु एकदेश अविरति या २८ मूलगुणोंमें प्रवृत्तिरूप प्रमादका सद्भाव भी वहाँ संभव है। इसी प्रकार पंचम गुणस्थानवी जीवमें एकदेश अविरति तो रहती है, परन्तु उसमें २८ मूलगणोंमें प्रवृत्तिरूप प्रमाद भी सम्भव है । षष्ठ गुणस्थानवतो जावम बन्धका कारण केवल २८ मूलगुणोंमें प्रवृत्तिरूप प्रमाद ही पाया जाता है और वह वहाँ नियमसे पाया जाता है। सप्तम गुणस्थानसे लेकर दशम गणस्थानतकके जीवोंमें बन्धका कारण संज्वलन कषायके यथायोग्य मन्द, मन्दतर और मन्दतमरूपमें होनेवाले उदयके आधारपर यथायोग्य नोकर्मों के अवलम्बनसे जीवकी भाववतोशक्तिके परिणमनस्वरूप यथासम्भव राग और दुषसे प्रभावित मानसिक. वाचनिक और कायिक योग हा होता है और वहाँ उसका सद्भाव अव्यक्तरूपमें ही पाया जाता है । इस लेखके अन्तमें मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि श्री पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री, कटनीका एक लेख "कर्मबन्ध और उसके कारणोंपर विचार" शीर्षकसे "वीरवाणी' पत्रिकाके वर्ष ४०, अंक ९ व संयुक्त अंक ११-१२ में प्रकाशित हुआ है। उसमें पं० जीने कुछ विषयको संशयरूपमें, कुछ विषयको अनध्यवसाय एवं कुछ विषयको विपर्ययरूपमें भी निबद्ध किया है उसका समाधान भी मेरे इस लेखसे हो सकता है, ऐसा विश्वास है। Kaya moomnony NAAR YAAVAT WAVA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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