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________________ ३/ धर्म और सिद्धान्त : ९७ नहीं मानी जाय तो उसके असंख्यातवेंभागप्रमाण तथा जिनकी समाप्ति हो तो कालके समयोंकी समाप्तिके साथ ही हो सकती है, भव्यजीवोंकी समाप्ति कैसे हो सकती है ? शंका-यहाँ पर भूत कालके समयोंका प्रमाण मक्तजीवराशिसे असंख्यातगुणा ही बतलाया गया है तथा वर्तमान एक समयमात्र और भविष्यत्कालके समय विद्यमान भव्यराशिके असंख्यातगुणे बतलाये है । लेकिन शास्त्रोंमें कालराशिका प्रमाण सर्वजीवराशिका अनन्तगुणा बतलाया गया है।' इसलिये यह कथन शास्त्रविरुद्ध होनेसे प्रमाण नहीं माना जा सकता है ? उत्तर-पूर्वकथनमें वर्तमान समय एक ही बतलाया गया है । वह उत्पाद और विनाशके क्रमसे बतलाया गया है। वर्तमान समय कालाणुकी पर्याय है। कालाणु लोकमें असंख्यात माने गये हैं तथा एक ही साथ समस्त लोकाकाशमें वर्तमान समय रहता है। जब प्रत्येक कालाणु स्वतन्त्र-स्वतन्त्र है तो इनकी पर्यायें भी स्वतन्त्र-स्वतन्त्र मानना पड़ती हैं। ऐसी हालतमें वर्तमान समयोंका प्रमाण कालाणुओंके समान असंख्यात हो जाता है । ऐसा ही कालाणुओंके भूत और भविष्यत् समयोंका भी प्रमाण समझना चाहिये । इसलिये पहले बतलाई हुई कालराशिका सर्वकालाणुओंके प्रमाणसे यदि गुणा कर दिया जाय तो सर्वसम्पूर्ण कालाणुओंके भूत, वर्तमान और भविष्यत् समयोंका प्रमाण निकल आता है। इतना होनेपर भी सर्वकालाणुओंके भूत, वर्तमान और भविष्य समयोंका प्रमाण मुक्त और वर्तमान भव्यराशिके प्रमाणसे असंख्यातगुणा ही सिद्ध होता है । इसके आगे यह विचार पैदा होता है कि कालाणुओंको वर्तमान पर्यायें एक समय तक ही वर्तमान रहकर भत हो जाती हैं। लेकिन वर्तमान व्यवहार कभी न नष्ट हुआ और न होगा, इसका कारण क्या माना जाय ? इसके लिये यही सुसंगत उत्तर दिया जा सकता है कि जब कालाणुओंकी एक-एक वर्तमान पर्याय भूत हो जाती है तो उसी समय उनको एक-एक भविष्यत् पर्याय वर्तमान हो जाती है, यह क्रम अनादिकालसे चला आ रहा है और अनन्तकाल तक चलता जायगा अर्थात् अनादिकालसे आज तक जितने समय बीत चुके वे सब वर्तमान होकर ही भूत हुए हैं एवं अनन्तकाल तक जितने समय बीतेंगे वे सब भी वर्तमान हो करके ही भूत होंगे। इसी प्रकार जब वर्तमान समय भूत हो जाता है तो प्रथम समयमें भिन्न प्रकारका, द्वितीय समयमें भिन्न प्रकारका, इसी तरह तीसरे, चौथे आदि अनन्तसमयोंमें अनन्तप्रकारका ही भूतपना उसमें रहेगा तथा प्रत्येक समयका भविष्यत्पना भी भिन्न-भिन्न कालमें भिन्न-भिन्न प्रकारका रहेगा। मान लीजिये कि आजका दिन आज वर्तमान है, आजसे जो भविष्यका दशवाँ दिन है वह कलके दिन भविष्यका नववाँ दिन कहा जायगा, परसोंके दिन आठवां, इसी तरह क्रमसे सातवाँ आदि होता हुआ दशवें दिन तक वर्तमान कहा जाने लगेगा तथा उसके आगे भूतका पहला, दूसरा, तीसरा आदि क्रमसे कहा जायगा। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रत्येक कालाणुके जितने भूत, वर्तमान और भविष्यत् समय हैं वे प्रतिक्षण भिन्नभिन्न परिणमन करते हैं और प्रत्येक समयके ये परिणमन उतने ही हो सकते है जितने कि प्रत्येक कालाणुके भूत, वर्तमान और भविष्यके समय बतला आये हैं। यदि ऐसा नहीं माना जाय तो आज दिन जो वर्तमान व्यवहार है वह इसके पहले व इसके आगेके दिन नहीं होना चाहिये। लेकिन इसके पहले व आगेके दिनमें भो हम वर्तमानका व्यवहार करते है अर्थात् जैसा आजके दिनको हम आज वर्तमान कहते हैं वैसे ही कलके दिनको कल वर्तमान कहेंगे, इसका कोई-न-कोई कारण अवश्य होना चाहिये और यह यही हो सकता है कि कालाणुका प्रत्येक समय प्रतिक्षण परिवर्तन करता रहता है । ये सब कालाणुके ही परिवर्तन हैं । इनका प्रमाण सम्पूर्ण कालाणुओंके जितने भूत, वर्तमान और भविष्यत् समय है उनसे अनन्तानन्तगुणा सिद्ध होता है जो १. गोम्मटसार जीवकाण्ड पर्याप्तिप्ररूपणा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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