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________________ २ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ व्याकरणाचार्य पण्डित होते हए अपनी आजीविकाके लिए उन्होंने कपड़ेका धंधा पसन्द किया था और खूब-खूबीसे चलाते हैं। शायद समाजका रुख पहलेसे ही उनकी पैनी दृष्टि पा गई थी। समाज मनीषियोंको जिस दृष्टिसे देखता है, परखता है और आर्थिक संकटोंसे विडम्बना रूप तरीकोंसे बचाना चाहती है वह सब अब सभी विदित है । अतः परिणामतः आज विद्वान् शेष नहीं बन रहे हैं और भविष्यमें वहाँ एक बड़ा शून्य मात्र ही नजर आयेगा। यह है हमारी धन पूजाका कुफल ! भाग्यहीनता ! सोनगढ़ की गलत प्ररूपणाके बारेमें पण्डितजीकी सशक्त कलम से खूब लिखा, किन्तु समाजने उसे कितना प्रोत्साहन दिया इसकी कथनी अतिकरुण है। कोई सहृदयी होता तो उसे कहने का मौका मिलता किन्तु वहाँ भी निर्जनता है । विद्वान् उपयोगी दीपक है। उसका संरक्षण हमारी संस्कृतिका रक्षण है। जितनी उदासीनता इस बारेमें रहेगी इतने कटु परिणाम हमें ही भोगने पड़ेंगे। जैनागमके मर्मज्ञ मनीषी •स्वस्तिश्री भट्टारक चारुकीर्ति पण्डिताचार्यवर्य स्वामीजी, मूडबिद्री ___ जैनदर्शनके मूर्धन्य विद्वान् समाजमान्य विद्वद्वर्य पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य जैन आगमके मर्मज्ञ प्रकाण्ड मनीषी हैं। प्रशम-हृदयी व परम भद्र परिणामी है इस वृद्धावस्थामें इस समय समाजमें सर्वाधिक चचित विषयपर आपने सन्तुलित लेखनी चलाई है। जैनागमके अधिकारी विद्वान् द्वारा गम्भीर विषयोंका अध्ययन व मनन करके जो पुस्तकें लिखी गई हैं वे महत्त्वपूर्ण हैं । और उससे धर्म-संस्कृतिकी रक्षा हो सकती है । वे स्वस्थ रहें यही हमारा उन्हें साधुवाद है । बहुमुखी प्रतिमाके धनी • कर्मयोगी भट्टारक चारुकीर्ति स्वामीजी जैन मठ, श्रवणबेलगोला सारस्वत, स्वतन्त्रता-संग्रामी, सिद्धान्ताचार्य पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यके अभिनन्दन ग्रन्थप्रकाशनकी योजना ज्ञात कर बड़ी प्रसन्नता हुई। __आदरणीय पण्डितजीका जीवन जैन सिद्धान्तके चिन्तन, मनन एवं लेखनमें ही अधिक संलग्न हैं। आप बहमुखी व्यक्तित्वके प्रतिभावान् विद्वान हैं। आपकी लिखी अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकोंमें एवं पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित आपके दार्शनिक, सैद्धान्तिक एवं सामाजिक लेखोंमें आपका व्यक्तित्व सर्वत्र झलकता है। आपने जीवनमें संचित ज्ञानके वितरणको ही औचित्य समझा। परिणामस्वरूप कई मौलिक ग्रन्थ आपके प्रकाशमें आये । आज चौरासी वर्षकी आयमें भी आप अपनी उसी प्रक्रियामें रहकर चौरासीसे मुक्त होनेके सत् प्रयत्नमें लगे हैं। अतः आप जैसे सारस्वतोंके जीवनकी अनेक उपादेय घटनाओंके साथ सिद्धान्त, दर्शन आदिके महत्त्वपूर्ण लेखोंसे भरा यह अभिनन्दन-ग्रन्थ ज्ञानवर्धक होनेसे संग्रहणीय रहेगा। __हमारी भावना है कि आप चिरायु हों और आपके जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्वका दर्शक यह अभिनन्दन- . ग्रन्थ समाजके जिज्ञासुओंके लिए नूतन स्रोत बने । भद्रं भूयात्-वर्धतां जिनशासनम् । इत्याशीर्वाद। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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