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________________ बहुश्रुत विद्वान् • आचार्य विद्यानन्दजी महाराज सिद्धान्ताचार्य पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य बहुश्रुत विद्वान् हैं । वे स्वतन्त्र चिन्तक हैं । उन्होंने आगमानुकूल और गम्भीर भाषामें ग्रन्थोंकी रचना की । उन्हें हमारा शुभाशीर्वाद है । शुभाशीष मङ्गल आशीर्वाद • श्री १०८ मुनि ब्रह्मानन्द सागरजी महाराज पण्डितजीको अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है, यह उनके योग्य है । मैं पाँच माह एक चातुर्मास में बीना रहा । मुझे पण्डितजीके तीन गुण याद आ रहे । प्रथम गुण उनका निःस्वार्थं भावसे ज्ञानदान देना है । उन्होंने मुझे पाँच माह नियमित स्वाध्याय कराया है । उनके समझानेकी शैली उत्तम है । सामान्य व्यक्ति भी उनकी सरल शैलीसे विषयको समझ लेता है । उनका दूसरा गुण है गुरु भक्ति और विनय । पाँच माहमें वे रोज आते और बड़ी भक्ति तथा विनयके साथ स्वाध्याय कराते थे । हमने उनमें बड़ी विनम्रता एवं निरभिमानता देखी । श्रद्धा-सुमन • क्षुल्लक चित्तसागरजी, घांटोल Jain Education International उनमें तीसरा गुण है समयकी नियमितता । एक मिनट भी वे विलम्ब नहीं करते । जो समय उन्होंने नियमित किया उस समयपर अवश्य आ जाते थे । विषय आरम्भ कर देते थे । बहुत ही मितभाषी और गम्भीर हैं । हमारा उन्हें शुभाशीर्वाद है । विद्वत्वर्यं वयोवृद्ध पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य के अभिनन्दनार्थं एक ग्रन्थ प्रकट होने जा रहा है ऐसा 'जैन गजट' में पढ़ा। अतः भाव हुए कि कुछ पंक्ति श्रद्धासुमनरूप भेजूँ । इसका फल यह है । महासभाकी भी मीटिंगोंमें तथा विद्वानोंकी मीटिंगोंमें मैंने गृहस्थकालमें पण्डितजीको प्रथम देखा था । सामान्य बातचीत भी हुई थी, पत्र-व्यवहारसे परिचय बढ़ा । यात्रा प्रवास में एक दिन उनके घर पर आतिथ्य भी अनुभव में आया था। वह इतना सरल, ऋजु और शालीन था कि वह मैं कभी भी भूल नहीं सकता। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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