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________________ २ / व्यक्त्वि तथा कृतित्व : ४३ २० रावत : सागर जिलेके 'रुरावन" ग्रामके नामपर इसका नामकरण हुआ है। २१ ववरोठिया : बण्डाका "बरायठा" ग्राम इसका उद्भव स्थल है। २२ सोंसरा : सागरका समीपवर्ती "सेसई" ग्राम इस गोत्रका मूल निवास रहा है। इसी ग्रामके नामपर इसका नाम रखा है। २३ गड़ौले : इस गोत्रके पूर्वज संभवतः शिवपुरी जिले में "गुडार" ग्रामके निवासी थे, अतः यह नाम उन्होंने इस ग्रामके नामपर रखा है। २४ पचलोरे : इसका नामकरण सम्भवतः शिवपुरी जिलेके “पचरई" ग्राम पर हुआ है । २५ सोरया : यह गोत्र ललितपुर जिलेके "सोंरई" ग्रामकी देन है । २६ हीरापुरिया : यह गोत्र “हीरापुर" ग्रामके नामपर निर्मित हुआ है। २७ कनकपुरिया : अपभ्रंश भाषाके विद्वान रइधूने सोनागिरिको 'कणयद्दि"-कनकगिरि कहा है । इससे ज्ञात होता है कि यह गिरितले बसा ग्राम "कनकपुरी" के नामसे प्रसिद्ध रहा होगा। मंदिर नं०१६में विराजमान गोलापूर्वान्वयकी सं० १२१३ की एक पद्मासनस्थ प्रतिमासे प्रतीत होता है कि यहाँ गोलापूर्व श्रावकोंका भी आवास था। इस गोत्रका नाम इसी कनकपुरीके नामपर रखा गया है। २८ पटोरहा : इसका नाम रहलीके समीपवर्ती ‘पटना' अथवा 'पटेरा' (कुण्डलपुर) के नामपर रखा गया प्रतीत होता है। २९ विलविले : यह नाम करेलीके समीपवर्ती 'विलहरा' ग्रामके नामपर रखा गया कहा जा सकता है। ३० करैया : ग्वालियरका 'करहिया' ग्राम, जहाँके निवासो वरैया-विलास ग्रन्थके लेखक पण्डित लेख राजजी थे, इसका उद्भव स्चल है। ३१ सोनो :यह वकस्वाहाके निकटवर्ती 'सुनवाहा' ग्रामके नामपर निर्मित गोत्र है। ३२ कनसेनिया : कटनोके पास एक प्राचीन स्थल है-'कारीतलाईं। इसका प्राचीन नाम कर्णपुर था। यह गोत्र सम्भवतः इसी ग्रामके नामपर बना है । ३३ पड़ेले : 'पिड़रुआ' या 'पड़वार' ग्रामके नामपर इस गोत्रका नामकरण हुआ है। ३४ सेनिया : सेनपा (सेंधपा) के नामपर निर्मित गोत्र है। ३५ दरगैंया : इस गोत्रके निवासी मूलतः 'दरगुवां' के निवासी थे। ३६ मझगैंया : जबलपुर जिलेके 'मझगुवां' गांवके नामप र इस गोत्रका नामकरण हुआ है। ३७ लखनपुरिया : खानियाधानाके पास स्थित 'लखारी' ग्राम इस गोत्रका मूल निवास प्रतीत होता है । ३८ बोदरे : यह गोत्र खनियाधानासे लगभग आठ मोल दूर स्थित 'निबोदा' ग्रामके नामपर निर्मित ज्ञात होता है। ३९ कोनियां : पाटनके पास हिरननदीके तटपर स्थित 'कोनी' ग्रामके नामपर इस गोत्रका नामकरण हुआ कहा जा सकता है। ध्यान रहे, ये नाम उसीप्रकार प्रसिद्ध हुए, जिसप्रकार जयपुरिया, जोधपुरिया आदि नाम प्रचलित है । और वे गोत्र बन गये। गोत्र-सूची में कुछ नाम ऐसे भी हैं, जो मूल निवासस्थानोंके नामपर निर्मित न होकर श्रावकोंके प्रमुख व्यवसायके नामोंपर निर्मित हुए हैं। ऐसे गोत्रोंके नाम निम्न प्रकार है-- १कोठिया : कोठारका कार्य करने वाले श्रावकोंका गोत्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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