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________________ २/ व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ४१ होकर उसने दक्षिणकी ओर प्रस्थान कर श्रवणबेलगोलमें चन्द्रगिरिपर मुनि वीरनन्दी या उनकी परम्परामें हुए किसी आचार्यसे मुनिदीक्षा धारण कर ली थी। ई०११६३ के पूर्व ही इसका राज्य गोल्लदेशके नामसे विख्यात हो गया था। परन्तु इसका नामोल्लेख अब तक चन्देल राज्यसे प्राप्त किसी भी अभिलेखमें प्राप्त नहीं होता। गोल्लागढ़ (गोलाकोट) को गोल पहाडीपर स्थित जैनमन्दिरकी मूर्तियोंके अभिलेखोंके मूलपाठ इस सन्दर्भमें पठनीय हैं । सम्भवतः उनमें गोल्लदेशका नाम उल्लिखित हो। हम यह पुनः कहेंगे कि चन्देल-शासकोंका शासन उत्तरभारतमें रहा है। इस वंशका संस्थापक नन्नुक चन्देल (ई० ८३१) था। उसने खजुराहो (छतरपुर) को अपनी राजधानी बनायी थी। इस वंशमें धंग (९५४ ई०), विद्याधरदेव (ई० १०२८), कीर्तिवर्मन् जैसे चन्देले राजा शासक हुए। इस सन्दर्भमें डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन द्वारा लिखित 'भारतीय इतिहास : एक दृष्टि' दृष्टव्य है, जो भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित है। गोलापूर्वान्वयके गोत्र 'गोत्र' जैनदर्शनके आठ कर्मों में सातवाँ कर्म है। धवला पुस्तक ६, पृष्ठ ७७ में गोत्रका अर्थ कुल या वंश बताया गया है। परन्तु जातियोंके सन्दर्भमें गोत्रका अर्थ बैंक होता है। कवि नवलशाहने इसी शब्दका व्यवहार किया है। उन्होंने दो सवैया और एक दोहेमें गोलापूर्वान्वयके अट्ठावन बैंक बताये हैं। उनके नाम कविके शब्दों में निम्न पद्योंमें द्रष्टव्य है-- खाग, फुसकेले और चन्देरिया, मरैययौ पपौरहा, बनोनहा, सु टेंटबार जानिये । भर्तपुरिया, छोरकटे, कोठिया, दुमेले औ बरघरिया, जुझौतिया, बेरिया, बखानिये ।। इन्द्रमहा (जन), खुर्देले, भिलसैंया, रौतेले, जनहारिया, निर्मोलक, तिगेले प्रमानिये । घौनी, पैथवार, रहदेले, कपासिया, गोदरे गुगौरिया, बबोलिया जुठानिये ॥ दंडकार सरखड़े, साधारण, टीकाके, रावत, बदरोठिया, सोनी, सोंसरा सु लीजिये। पतरिया, घुधोलिया, गड़ोले, पचलौरे, सनकुटा, सोरया, हीरापुरिया सुनीजिये । कनकपुरिया, कनसेनियाँ, पटौरहा सु विलविले, नाहर, करैया, सांधेले गणीजिये । पडैले, सैनियाँ, दरगैयाँ, सपोतहा मझगैयाँ, लखनपुरिया, बोदरे गनीजिये ।। सिरसपुरिया, कोनियाँ ये अठान बैंक । 'नवल' कहे संक्षेपसे निजकूल वरणों नेक ॥४९ कविने इन पद्योंमें जिन बैंकोंके नाम बताये है वे क्रमशः निम्न प्रकार है १. खाग, २. फुसकेले, ३. चन्देरिया, ४. मरैया, ५. पपौरहा, ६. बनोनहा, ७. टेंटवार, ८. भर्तपुरिया, ९. छोरकटे, १०. कोठिया, ११. दुमेले, १२. बरधरिया, १३. जुझोतिया, १४. बेरिया, १५. इन्द्रमहा, १६. खुर्देले, १७. भिलसैंया, १८. रौतेले, १९. जनहारिया, २०. निर्मोलक, २१. तिगेले, २२. धौनी, २३. पैथवार, २४. रहदेले, २५. कपासिया, २६. गोदरे, १७. गुगौरिया, २८. ववोलिया, २९. दैन्डकार, ३०. सरखड़े, ३१. टीकाके, ३२. रावत, ३३. वदरोठिया, ३४. सोनी, ३५. सोंसरा, ३६. पतरिया, ३७. धोलिया; ३८. गड़ोले, ३९. पचलौरे, ३०. सनकुटा, ४१. सोरया, ४२. हीरापुरिया, ३३. कनकपुरिया, ४४. कनसेनियाँ, ४५. पटोरहा, ४६. विलविले, ४७. नाहर, ४८. करैया, ४९. सांधेले, ५०. पड़ेले, ५१. सेनियां, ५२. दरगैयाँ, ५३. सपोतहा, ५४. मझगैयाँ, ५५. लखनपुरिया, ५६. बोदरे, ५७. सिरसपुरिया और ५८. कोनियाँ। गोत्र-नामकरण अन्वयोंके सृजनमें जैसे प्रधानतः उनकी चारित्रिक विशुद्धि कारण रही है, ऐसे ही गोत्रोंके सृजनमें भी २-६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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