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________________ ३० : सरस्वती-बरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्य इतना काम हो जानेके बाद अब केवल एक जगह शेष रह गयी थी--'सोरईका बगीचा"। इसमें मुख्य था उस बगीचे में स्थित मढ़ (मन्दिर)। शीघ्र ही हमलोग बगीचा पहँच गये । वहाँ जाकर मैंने देखा बगीचेके बीच एक मढ़ बना हआ है, पत्थरोंको तराशकर तथा पत्थरों, खम्बों आदिको एकके ऊपर व्यवस्थित ढंगसे रखकर इस मढ़का निर्माण किया गया है। मैंने उस मढ़का भी एक सुन्दर चित्र खींच लिया । मैंने आभास किया कि वक्त गुजरने के साथ-साथ मढ़ की स्थिति बिगड़ती चली गयी। मैंने मढ़को इस समय एक ओर झका हआ महसूस किया। शायद उसका एक खम्भा तिरछा हो जाने के कारण तथा ऊपर रखा गोल चक्रनुमा हिस्सेके भी टुकड़े हो चुके हैं । फिर भी खूबसूरती लिये हुए सोरइका यह ऐतिहासिक मढ़ (जैन मन्दिर) अभी भी अपने स्थानपर विद्यमान है। सोरई : आसपास हमारा काम लगभग समाप्त हो चुका था। लेकिन उत्सुकतावश मैंने वहाँके स्थानीय व्यक्तियोंसे भी सम्पर्क किया । तरह-तरहकी जानकारी मुझे प्राप्त हुई, जिसे मैं आगे लिख रहा हूँ सोरई ग्रामको यदि ‘खनिजोंका गाँव" कहा जाये, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि यहाँ-- लोहा, ताँबा, सीमेंटका पत्थर, ग्रेफाइट आदि प्रचुर मात्रामें मौजूद है । लोहा यहाँ भारी मात्रामें उपलब्ध है । पराने जमाने में यहाँ लोहेका काम भी बहुत होता था, किन्तु माँगकी कमीके कारण यह काम बादमें बन्द हो गया। ताँबेकी खदानें तो गाँवमें ही स्थित है । प्रयत्न किया जाये तो ताँबेका अच्छा-खासा भण्डार मिलनेकी पूर्ण सम्भावनायें यहाँ नजर आती है। इससे पहले यहाँ खुदाई अवश्य हुई और ताँबा निकाला गया, परन्तु साधनोंकी कमीके कारण पूर्णरूपेण सफलता नहीं मिल पायी। 'फास्फेट" एक महत्त्वपूर्ण पत्थर यहाँ विपुल मात्रामें उपलब्ध है। इसका काम खाद बनानेके रूपमें विशेष होता है । यहाँसे थोड़ी दूर एक स्थानपर, जिसे "टोरी" कहते हैं, फास्फेट निकालनेका काम तेजीके साथ चल रहा है । यहाँपर बाहरके एवं स्थानीय करीब एक हजार मजदूर प्रतिदिन काम कर रहे हैं । फास्फेट पत्थरकी छोटी-छोटी गिट्टी बनाकर ट्रकों द्वारा बाहर भेजनेका क्रम अभी भी जारी है। "यूरेनियम" एक वेशकीमती खनिज, जिसकी प्राप्तिको पूर्ण सम्भावनायें यहाँ व्यक्त की जा रही हैं। इसके लिए विदेशी सहयोगसे उसकी खोज अभी भी जारी है। इसके अलावा सोरईसे लगा हुआ एक घना जङ्गल भी है। इस जङ्गलमें महुआ, गोंद, चिरोंजी एवं कई प्रकारकी अनेक जड़ी-बूटियोंका विशाल भण्डार है। यहाँके आदिवासी (सोर) इन्हींके द्वारा अपना उदरपोषण कर रहे हैं। भारत-सरकार द्वारा निर्मित "रोहणीबाँध" गाँवके बीच निकली रोहणी नदीपर लगभग दो किलोमीटरका नीचेकी ओर बनाया गया है, जिससे सोरईके ग्रामके रहवासियोंको तो कोई फायदा नहीं, लेकिन नीचे रहनेवाले गरीबोंको नहरों द्वारा भरपूर पानी की व्यवस्था उपलब्ध है। सोरईसे पूर्व दिशाकी और अतिशय क्षेत्र गिरार है। वहाँ धसान नदीके किनारे बना हुआ दि० जैनमन्दिर दर्शनीय है। किसी समय यह स्थान काफी उन्नतिशील रहा है। ऐसा सुनने में आया है कि यहाँ बहुत बड़ा बाजार लगता था, जिसमें बाहरी व्यापारी भी अपना व्यापार करने आते थे। अब वहाँ खण्डहर मात्र शेष है । मात्र सुन्दर मन्दिर बना हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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