________________
४८६
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
वाल्युम, पटना, १९२८),जे० ब्लाख के कई निबन्ध और एमेन्यु के निबन्ध "द डायलेक्ट्स आव इण्डो-आर्यन," "सम क्लियर एवीडेन्स आव प्राकृतिसिज्म इन पाणिनि" महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते हैं।
इनके अतिरिक्त प्राकृत भाषा के उच्चारण आदि के सम्बन्ध में तथा ध्वन्यात्मक दृष्टि से डॉ. ग्रियर्सन, स्वार्स चाइल्ड तथा एमेन्यु आदि का अध्ययन-विश्लेषण आज भी महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश करने वाला है। इस प्रकार भाषा-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं तथा उनके विविध प्रवृत्तियों के मूलगत स्वरूप के अध्ययन की दृष्टि से भी मध्यभारतीय आर्यभाषाओं और विशेषकर प्राकृत-अपभ्रंश भाषाओं का आज भी विशेष अध्ययन विशेष रूप से उपयोगी एवं भाषा-भाषिक संसार में कई नवीन तथ्यों को प्रकट करने वाला है। इस दृष्टि से इन भाषाओं का बहुत कम अध्ययन हुआ है। इतना अवश्य है कि यह दिशा आज भी शोध व अनुसन्धान की दृष्टि से समृद्ध तथा नवीन आयामों को उद्घाटित कर सकती है। काश ! हमारी युवा पीढ़ी इस ओर उन्मुख होकर विशेष श्रम तथा अनुशीलन करे, तो सांस्कृतिक अध्ययन के भी नवीन क्षितिजों को पार कर स्वणिम विहान लाया जा सकता है।
१. प्रोसीडिंग्स आव द सेमिनार इन प्राकृत स्टडीज, पूना युनिवर्सिटी, १९७०, पृ० २२५-२६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org