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________________ जैन गणित : परम्परा और साहित्य ४१५ . -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-... ..... . ...... 'गणिविद्या' (गणिविज्जा) नामक 'प्रकीर्णक' (अंगबाह्यग्रन्थ) में दिवस, तिथि, नक्षत्र, योग, करण, मुहूर्त आदि सम्बन्धी ज्योतिष का विवेचन है, इसमें 'होरा' शब्द भी मिलता है, इसमें प्रसंगवश गणित के सूत्र भी शामिल हैं। परवर्तीकाल में जैनाचार्यों द्वारा विरचित गणित सम्बन्धी ग्रन्थों और ग्रन्थकारों का परिचय यहाँ दिया जा रहा है तिलोयपण्ण त्ति (छठी शती)-यतिवृषभ । त्रैलोक्य सम्बन्धी विषय को प्रस्तुत करने वाला प्राचीनतम ग्रन्थ है। रचना प्राकृत-गाथाओं में है। कहीं-कहीं प्राकृत-गद्य भी है। १८००० श्लोक हैं । कुल गाथायें ५६७७ हैं । अंकात्मक संदृष्टियों की इसमें बहुलता है। ६ महाधिकार हैं - सामान्यलोक, नारकलोक, भवनवासीलोक, मनुष्यलोक, तिर्यक्लोक, व्यन्तरलोक, ज्योतिर्लोक, देवलोक, सिद्धलोक । इसकी रचना ई० ५०० से ८०० के बीच में हुई । सम्भवत: छठी शती में। गणितसार-संग्रह (८५० ई० के लगभग)-यह मूल्यवान् कृति महावीराचार्य द्वारा विरचित है। यह दक्षिण के दिगम्बर जैन विद्वान थे। इनको मान्यखेट (महाराष्ट्र) के राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष का राज्याश्रय प्राप्त था। यह गोविन्द तृतीय (७९३-८१४ ई०) का पुत्र था। उसका मूल नाम शर्व था। राज्याभिषेक के समय उसने 'अमोघवर्ष' उपाधि ग्रहण की। इस नाम से वह अधिक विख्यात हुआ। उसे शर्व अमोघवर्ष भी कहते हैं । नृपतुंग, रट्टमार्तण्ड, वीरनारायण और अतिशयधवल उसकी अन्य उपाधियाँ थीं। राष्ट्रकूट राजाओं की सामान्य उपाधियाँ 'वल्लभ' और 'पृथ्वीवल्लभ' भी उसने धारण की थीं। इन उपाधियों में 'अमोघवर्ष' और 'नृपतुंग' विशेष प्रसिद्ध हैं । उसने छासठ वर्ष (८१४-१५० ई०) तक राज्य किया। पूर्व में वेंगी के चालुक्यों को पराजित कर अपने राज्य में मिला लिया था। अमोघवर्ष विद्वानों और कलाकारों का आश्रयदाता था। स्वयं भी विद्वान् और कवि था। कन्नड साहित्य का प्रथम काव्य 'कविराजमार्ग' है, जिसका रचयिता स्वयं अमोघवर्ष है । अनेक कन्नड लेखकों को उसने प्रश्रय दिया था। अमोघवर्ष की जैन धर्म और दर्शन के प्रति विशेष रुचि थी। आदिपुराण के रचयिता जिनसेन ने लिखा है कि वह अमोघवर्ष का आचार्य था। जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने अपनी पुस्तक 'गणितसारसंग्रह' में अमोघवर्ष को जैन बताया है। वह धर्मसहिष्णु था। उसने हिन्दू और जैन धर्म के समन्वय का प्रयत्न किया था। ___ साहित्य और विज्ञान के प्रति विशेष प्रेम के कारण उसके राजदरबार में ज्योतिष, गणित, काव्य, साहित्य, आयुर्वेव आदि विषयों के विद्वान् सम्मानित हुए थे। अमोघवर्ष के समय में अनेक प्रकाण्ड जैन विद्वान् हुए। गणितसारसंग्रह ग्रन्थ के प्रारम्भ में महावीराचार्य ने भगवान् महावीर और संख्याज्ञान के प्रदीप स्वरूप जैनेन्द्र को नमस्कार किया है १. वैदिक परम्परा में छ: वेदांगों में ज्योतिष को गिना गया है। ज्योतिष का मूल ग्रन्थ 'वेदांगज्योतिष' है, इसके दो पाठ हैं-ऋग्वेदज्योतिष और यजुर्वेदज्योतिष। ज्योतिष के दो विभाग हो गये हैं --गणितज्योतिष और फलितज्योतिष। इनमें से गणितज्योतिष प्राचीन है। ज्योतिष के निष्कर्ष गणित पर आधारित हैं । अतः वेदांगज्योतिष (श्लोक ४) में समस्त वेदांगशास्त्रों में गणित को सर्वोपरि माना गया है यथा शिखा मयूराणां, नागानां मणयो यथा । तद्ववेदांगशास्त्राणां, गणितं मूर्ध्नि संस्थितम् ॥ अर्थात्-जिस प्रकार मोरों में शिखाएँ और नागों में मणियाँ सिर पर धारण की जाती हैं, उसी प्रकार वेदांगशास्त्रों में गणित सिर पर स्थित है अर्थात् सर्वोपरि है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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