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________________ ६४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड ................................................................... गौरव संप्राप्त किया है। विद्योत्तमा ने धुरन्धर प्रतिभासम्पन्न विद्वानों की पोल का रहस्योद्घाटन कर दिया। मण्डन मिश्र की स्त्री से कौन अपरिचित है जिसे शास्त्रार्थ में निर्णायक के रूप में मनोनीत किया गया। भारत की गौरवमयी परम्परा को उजागर करने में व समाज में संव्याप्त अर्थहीन रूढ़ियों का उन्मूलन करने में जानकी, अनुसूया, अहिल्या, गायत्री आदि स्त्रियों का स्पृहणीय व सक्रिय योगदान रहा है। इतिहास उन माताओं के पराक्रम, शौर्य व सहनशीलता की गाथाओं से गौरवान्वित है जिन्होने अपनी संतानों को भारत के क्षत्रिय वंश के गौरव को सुरक्षित रखने की सुन्दर शिक्षा से आप्लावित किया। एक कथा प्रसंग इस प्रकार है रानी विदुला का पुत्र सिन्धुराज से पगस्त होकर निराशावादी विचारधारा में निमग्न हो गया और उदासीन होकर घर आकर बैठ गया । वीरांगना को अपने पुत्र के हृदय दौर्बल्य पर बहुत ग्लानि हुई। उसे इस पौरुषहीनता से ऐसा आघात लगा मानो उस पर वज्रपात हो गया हो । अपने पुत्र को लताड़ते हुए उसने कहा-"पुत्र! तू एक क्षत्राणी की कुक्षि से पैदा हुआ है । मेरा सुख बढ़ाने की बनिस्बत शत्रु का सुख-वैभव बड़ा रहा है। क्षत्रिय अगर पराजित होकर पलायन करता है तो वह पुरुष नहीं कापुरुष है। तू उठ, तिन्दुक की लकड़ी की तरह चाहे क्षण भर भी ज्वलन्त होकर स्वाहा हो जा । जीने का मोह त्याग दे। या तो अपना पराक्रम दिखला अथवा अपना अन्त कर ले। क्योंकि जिस क्षत्रिय के पराक्रम व पौरुष की गौरवगाथा नहीं गायी जाती तथा जिसका पुत्र उत्साहहीन व कायर है वह माता सबसे बड़ी अभागिनी है।" इस प्रकार माताओं ने समय-समय पर पुत्रों को बलिदानी योद्धा बनने की प्रबल प्रेरणा से प्रोत्साहित किया है। वैसे ही चोरी, अन्याय, अत्याचारों व दुर्व्यसनों से बचने की भी शिक्षा प्रदान करती रही हैं तथा सुसंस्कार भरती रही हैं । पर ये सारी बातें तभी संभाव्य हो सकती है जबकि नारी-समाज स्वयं प्रशिक्षित, अनुशासित आदिआदि गुणों से अलंकृत व मण्डित हो । उसके व्यावहारिक जीवन में पवित्रता, उदारता, सौम्यता, विनय, अनुशासनप्रियता आदि-आदि गुणों का पुट भी हो तो वस्तुत: उसका जीवन मणिकांचन योग होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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