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________________ .0 ८० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड Jain Education International ही वह ऐसा करता है । अतः मनुष्य विवेकशील प्राणी है। उसका विवेक जागृत है, वह जिस वस्तु को हेय समझ लेता है फिर उसे कदापि ग्रहण नहीं करता । यह हेय और उपादेय की जागृति कब होती है, जब उसके पास ज्ञान हो, अध्ययन हो । बस बस शिष्य समझ गया कि मुझे पढ़ना चाहिये तथा निष्ठापूर्वक विद्याभ्यास करना चाहिए । क्योंकि कहा गया है- "सा विद्या या विमुक्तये" विद्या वही है जो दुर्गुणों से मुक्ति दिलाए। पर आज के विद्यार्थी दुर्गुणों के दास बन गये हैं, फैशनपरस्ती में वे इसने सराबोर रहते हैं, उन्हें अनुभव ही नहीं होता कि अमूल्य मानवजन्म को हम कैसे नष्ट कर रहे हैं। माता-पिता व सद्गुरुजनों की शिक्षा का तो लेशमात्र भी उन पर असर नहीं होता क्योंकि मनुष्य का मन इतना दुर्बल है कि सद्गुणों की अपेक्षा दुर्गुणों से अधिक प्रभावित होता है। इस मानसिक अनियन्त्रण से दुराचार की व्याधि प्रतिदिन बढ़ रही है चाहे सरकारी कानून कितने ही क्यों न बनाये जायें। जब तक अन्तस्तल की जागृति नहीं हो पाती, तब तक दुराचार को सदाचार में परिवर्तित करना असंभव है । विवेक का जागरण बाहर से नहीं, भीतर से होगा । विद्यार्थी अगर भारत के महान् नेता व राष्ट्रपति बनना चाहते हैं तो वे अणुव्रत के माध्यम से अपना निरीक्षण करना सीखें तथा समय की कीमत को आँके । महान् बनने की भावना के सुनहरे स्वप्न जो आप रात को संजोते हैं वे स्वप्न स्वप्न न रहकर साकार होने लगेंगे। एक अंग्रेज ने कहा है(Time is money) समय बहुत बड़ा धन है । नेपोलियन युद्ध की व्यस्तता में भी जोजेफाइन को पत्र लिखने का समय निकाल ही लेता था। ऐसा कहा जाता है कि आज वे पत्र करोड़ों डालर के हैं । एक दुकानदार के पास एक व्यक्ति पुस्तक खरीदने के लिए आया और पुस्तक का मूल्य पूछा। बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा – एक डालर । वह चला गया । कुछ क्षण रुककर पुनः आया और पूछा- महाशय ! पुस्तक का मूल्य कुछ कम करोगे ? फ्रैंकलिन ने तपाक से उत्तर दिया- सवा डालर । ग्राहक असमंजस में पड़ गया। पुस्तक वही है इतने में चौथाई डालर कैसे बढ़ गया । उससे रहा नहीं गया। उसने अपनी जिज्ञासा का स्पष्टीकरण चाहा। दुकानदार ने हार्द समझाते हुए कहा कीमत पुस्तक की नहीं, समय की होती है । आज जो आप विकास की रूपरेखा देख रहे हैं, ये सारे विकास के कार्य समय की उपादेयता से ही सम्पादित हुए हैं। अतः छात्रों को चाहिए कि वे समय का मूल्यांकन करे । महान् कवि, वक्ता व प्रोफेसर बनने की अभीप्सा हो तो समय के पाबन्द बनें तथा साथ ही साथ अपने जीवन को नैतिक, ईमानदार व सदाचारी बनाने का सतत प्रयास करें जिसका हृदय करुणा व मंत्री से ओत-प्रोत है, वही व्यक्ति समाज, राष्ट्र व परिवार के समक्ष नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना कर सकता है। जीवन की उज्ज्वल, पवित्र व प्रकाशमयी आभा के परिप्रेक्ष्य में अपने आपको झाँक सकता है । उस छात्र का जीवन धन्य है जिसने समय की प्राणवत्ता को सही माने में समझ लिया है । नैतिक शिक्षा की दृष्टि से अंकन करें तो राणावास की विद्याभूमि अपना गौरवमय इतिहास प्रस्तुत करती है एवं आधुनिक युग में एक नया कीर्तिमान स्थापित करती है । । SIC For Private & Personal Use Only 0 www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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