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________________ नैतिक शिक्षा की व्यावहारिकता साध्वी श्री ललितप्रमा (युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी की शिष्या) ईश्वर से मानव ने अपील की-मैं अपना जीवन सुखी और सरस बनाने संसार में जा रहा हूँ। आप मुझे ऐसा कोई मन्त्र दें ताकि सफल हो सकू। ईश्वर ने कहा- मेरे बेटे ! मैं तुम्हें जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण दो वस्तुएं दे रहा हूँ--एक अक्ल और दूसरा ईमान । अक्ल को खूब खरचना और ईमान को सुरक्षित रखना। याद रहे, तुम्हारे बाएँ हाथ में अक्ल और दाएं हाथ में ईमान है। वहाँ पहुँचते-पहुँचते विस्मृति का पट स्मृति पर गिर गया। मानव ने अक्ल की जगह ईमान को खूब बाँटा और अक्ल को सुरक्षित रखा। लगता है, वही परम्परा अब तक चल रही है कि मनुष्य ने अक्ल को सुरक्षित रख दिया। ईमान को दोनों हाथों लुटा रहा है। तथ्य सही है चिन्तनात्मक और मननात्मक शक्ति के विकास की अपेक्षा है। शिक्षा के दो रूप हैं-नैतिक और भौतिक । नैतिक शिक्षा अन्तर् को आलोकित करती है। सुप्त चेतना को जागृत करती है। संकल्प शक्ति को मजबूत बनाती है। भौतिक शिक्षा केवल जीवन-निर्वाह योग्य बनाती है। उसके लिए स्थान-स्थान पर डिग्रियाँ मिलती हैं। परिणाम यह आता है कि उन्हें नौकरी भी बड़े दौड़-धूप के बाद मिलती है। इससे केवल पुस्तकीय ज्ञान का प्रश्न भी हल नहीं हो सकता । व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास, चरित्र का विकास अच्छी तरह से हो सके, वही शिक्षा अधिक सार्थक है। केवल कमाना सिखाए वह वास्तविक शिक्षा नहीं है क्योंकि वह तो एक अनपढ़ व्यक्ति श्रम करके भी कमा सकता है। आधुनिक शिक्षाविद् यह मानने लगे हैं कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में परिवर्तन बहुत अपेक्षित है। सरकार की तरफ से ऐसी कोई भी योजना आज तक नहीं बनी कि विद्यार्थियों का जीवन स्तर ऊँचा कैसे उठे ? नैतिक कैसे बनें, चरित्रनिष्ठ कैसे हों ? बिना नैतिक आधार के शिक्षा अधुरी है और वह फलवती भी नहीं बनती। नैतिक शिक्षा का उद्देश्य है -जीवन-व्यवहार विशुद्ध बने, जीवन का मूल्य समझने की क्षमता, जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान पाने का सामर्थ्य, प्रामाणिक जीवन जीने की कला। कोई भी क्रिया जब तक जीवनगत नहीं होती तब तक सफल नहीं हो सकती। भगवान् महावीर ने कहा -'पढमं नाणं तओ दया'---पहले ज्ञान फिर क्रिया । बिना ज्ञान के क्रिया सार्थक नहीं होती । ज्ञानात्मक और प्रयोगात्मक दोनों स्थितियों का विकास ही नैतिक जीवन का सोपान है। ___ आज देश जिस स्थिति से गुजर रहा है उससे हर प्रबुद्ध व्यक्ति चिन्तित है। गिरते नैतिक स्तर से उनका मन छटपटा रहा है। मानसिक विचार बुरी तरह प्रभावित हैं। चारित्रिक व नैतिक पतन चरम-सीमा तक पहुंच चुका है। इसलिए अपेक्षा है विद्यार्थियों में चारित्रिक व नैतिक गुणों का विकास प्रारम्भ से ही हो और वे अगर प्रामाणिक, सदाचारी, ईमानदार होते हैं तो ऐसी नैतिक शिक्षा आन्तरिक वृत्तियों का शोधन ही नहीं कलात्मक जीवन जीना भी सिखाती है। बुराइयों से बचाती है। चिन्ताजनक भारत के भविष्य को ही नहीं विश्व को उज्ज्वल बना सकती है। ___वर्तमान में अनैतिकता का पलड़ा भारी है । नैतिकता से, नैतिक शिक्षा के माध्यम से उसे हल्का बनाया जा सकता है। यद्यपि यह पतन आज कोई नया नहीं, पर तारतम्यता की दृष्टि से धरती-आसमान जितना अन्तर प्रतीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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