SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या धार्मिक शिक्षा उपयोगी है ? ७६ गोत्र के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जानता। अज्ञात परिवार के परिवेश से गुजर रहा हूँ। मैं अपने गोत्र के परिचय के सम्बन्ध में पूर्णत: अनभिज्ञ हूँ। महर्षि गौतम के स्मित हास्य बिखेरते हुए कहा-जाओ, अपनी माँ से पूछकर आओ। सत्यकाम चिन्ता की गहना ब्धि में डूबने लगा। पैर लड़खड़ाने लगे। वह निराशा भरे स्वर में बोला-माँ ! बताओ अपना गोत्र क्या है ? माँ पुत्र की वाणी सुनकर निस्तब्ध हो गई । आखिर बताए भी क्या, कोई एक पति हो तो बताए । वरना क्या बताए? वह भी असंमजन में पड़ गई। बेटा, तुम्हें अगर कोई भी पूछे तो उससे स्पष्ट कहो-मेरा नाम सत्यकाम जाबाल है। उसने घर से सानन्द विदा ली और महर्षि गौतम के उपपात में उपस्थित हुआ। अपने गोत्र के सम्बन्ध में यथातथ्य कह सुनाया। महर्षि उसकी अन्तस्तल की सरलता पर आश्चर्यचकित थे। करुणामयी दृष्टि का स्नेह भाजन बनकर सत्यकाम आश्रम में रहने लगा। महर्षि गौतम का हृदय उसकी विनयशीलता पर द्रवीभूत हो गया। उसे ज्ञान का पात्र समझकर 'ब्रह्मज्ञान' का उपदेश दिया। अन्त में वह महषि जाबाल नाम से प्रसिद्ध हुआ। सिंहनी का दूध स्वर्णपात्र में ही ठहरता है, अन्य पात्र में नहीं । आत्मज्ञान भी पात्र को ही सम्प्राप्त होता है, अपात्र को नहीं । एक कवि ने यथार्थ का दिग्दर्शन कराते हुए उल्लेख किया है। जैसे विना गुरुभ्योः गुणनीरधिभ्योः जानाति धर्म न विचक्षणोऽपि । यथार्थसार्थं गुरुलोचनोऽपि दीपं विना पश्यति नान्धकारे ॥१॥ मनोवैज्ञानिक स्तर से विश्लेषण करें तो पायेंगे कि गुरु की महिमा अगाध है। वह शिष्य की हृदयगत तरंगित भाव ऊर्मियों को आसानी से परिलक्षित कर लेता है। आधुनिक युग में अनेक वैज्ञानिकों ने यन्त्रों का परिनिर्माण कर विश्व को चकाचौंध कर दिया है, किन्तु आत्मा को जानने का कोई भी यन्त्र नहीं है। अतः श्रमण भगवान् महावीर ने कहा--."चरेज्जत्त गवेसए".-खुद को जानकर आगे बढ़ो। यूरोप और एशिया को जानने से पूर्व अपने अन्तस्तल को जानो। एक अंग्रेज का भी यही कहना है-(Know thy self) अपने आप को जानो, गहराई में उतर कर जानो। आज का छात्र पानी पर तैरने वाली शैवाल की भाँति पुस्तकों के ऊपरी ज्ञान को ही पकड़ता है। ज्ञान का समुद्र बहुत गहरा है। वहाँ कौन डुबकियां लगाए ? अम्बुधि तट पर खड़ा रहने वाला तो सीप-शंख ही पाता है। कीमती मोती कहाँ से पायेगा ? गहराई के अभाव में धर्म के बिना कोई भी अपना हित-चिन्तन नहीं कर सकता। धर्म भारतीय जनता की आत्मा है। धर्म-निरपेक्ष का अर्थ होगा, आत्मा की परिसमाप्ति । अध्यात्मशून्य शक्षणिक व्यवस्था आज के भौतिकवादी गुण में वरदान की अपेक्षा अभिशाप सिद्ध हो रही है क्योंकि भारतीय छात्र अब भी पाश्चात्य शिक्षा संस्कृति से प्रभावित हैं। अतः सभ्यता व व्यावहारिकता के तो उसमें दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं। भगवद्वाणी भारतीय विद्यार्थियों का जीवन ही बदल देती है। अगर वे अपने जीवन का निरीक्षण सत्य व ईमान की भूमिका पर खड़े होकर करें तो वे बहुत ही सुसंस्कृत व सभ्य नागरिक बनने में सक्षम हो सकते हैं। अतः इस आर्ष वाणी को सदैव याद रक्खें-'न असब्भमाहु' असभ्य, अप्रिय तथा क्लेश वर्धक तुच्छ शब्द अपने मुंह से न बोले । यही विद्यार्जन का सही फलित होगा। मनुष्य का उदात्त विचार ही स्वस्थ समाज की परिकल्पना है। गुरु ने शिष्य से कहा- "नहि ज्ञानेन सदृशं, पवित्रमिह विद्यते” अर्थात् संसार में ज्ञान की तुलना में कोई भी वस्तु पवित्र नहीं हो सकती। किन्तु दृष्टि से अगर यथार्थ का प्रतिबिम्ब उतर आये तो सारा अन्धकार स्वतः ही विलीन हो जाये, यह कब होगा जब बुद्धि अयथार्थ के पर्दे से अनावृत हो जायेगी तथा बुद्धि का पवित्रीकरण हो जायेगा तो प्रकाश ही प्रकाश सर्वत्र विकीर्ण होने लगेगा। गुरु ने शिष्य को हस्ती का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए .. कहा- हाथी स्नान करने हेतु तालाब में प्रवेश करता है। स्नान करने के पश्चात् ज्योंही वह बाहर भाता है। पुनः अपनी ही सूंड से अपने ऊपर मिट्टी डालने लग जाता है। शिष्य ने पूछा-गुरुदेव क्या ! बह मूर्ख है ? जो स्नान की विशुद्धि और पवित्रता को नहीं समझता । गुरु ने कहा-बह अज्ञानी है, उसका बिबेक जागृत नहीं है । अज्ञान के कारण -0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy