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________________ ६२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ तृतीय खण्ड परेशान है, समाज में उसका कोई स्थान नहीं है। राजनीति, व्यापार, प्रशासन और नौकरी सबमें वह असफल होता है । तथाकथित सफल व्यक्ति ऐसे सदाचारी व्यक्ति को अपनी राह से हटाने के लिये क्या-क्या नहीं करते हैं । हालत यह है कि ईमानदार लोग जब संघर्ष करते-करते थक जाते हैं तो अन्त में आत्महत्या करने की ओर अग्रसर हो जाते हैं। हमारे देश की आज यह जो स्थिति बन गई है, उसका मूल कारण शिक्षा का दोषपूर्ण होना है। छात्र पढ़ना नहीं चाहता, वह नकल करके पास होना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानने लगता है, यह हिंसा, तोड़-फोड़ और आन्दोलन में अपनी शक्ति व सामर्थ्य को भुनाता चला जा रहा है, वह अध्यापकों के साथ बैठकर धूम्रपान करता है, शराब पीता है और अनैतिक आचरण में व्यस्त रहता है। जिस देश में शिक्षा की यह स्थिति हो, उस देश में संस्कारवान व्यक्ति कैसे पैदा होगे ? जब स्वयं अध्यापक संस्कारहीन है तो छात्र संस्कारवान् होगा, इसकी अपेक्षा कैसे की जा सकती है ? प्रायः यह कहा जाता है कि बालक का घर उसकी प्रथम पाठशाला है, किन्तु आज माता-पिता अपने कामधन्धों में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं ? कहाँ रहते हैं ? क्या खाते हैं ? क्या बोलते हैं ? उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं । महानगरों की स्थिति तो यह है कि माता-पिता जब बच्चे सो रहे होते हैं, तब काम-धन्धों पर निकल जाते हैं और देर रात में जब बच्चे सो जाते हैं तब लौटते हैं। छोटे शहरों में भी यह स्थिति क्रमशः बढ़ रही है। ऐसी हालत में बच्चे घर के नौकर या नौकरानी के साथ दिन गुजारते है, उनकी तरह ही वे आचरण सीखते हैं या आस-पड़ोस में स्वच्छन्द रूप से घूमते रहते हैं । अवकाश के दिन वे अपने माता-पिता के साथ अवश्य रहते हैं, किन्तु पिता जब धूम्रपान करने वाला हो और वह छोटे बच्चों के सामने धड़ल्ले से धूम्रपान करता हो तो बच्चे पर उसका क्या असर पड़ेगा ? टेलिविजन पर जब छोटे बच्चे अपने माता-पिता के साथ बैठकर सिनेमा देखते हैं, तो उनके कोमल मस्तिष्क पर सिनेमा के कथानक के अनुसार क्या हाव-भाव पैदा होते हैं, क्या इसकी कभी कल्पना की ? जिस घर में अश्लील और सस्ता साहित्य पढ़ा जाता है, सत्यकथाएँ व रोमांचकारी पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ी जाती है, उस घर के बच्चे क्या संस्कारवान् बनेगे ? पति-पत्नी के रिश्तों में टूटन के दृश्य जिस तरह आये दिन देखने को मिलते हैं, क्या वे कभी बच्चों के मस्तिष्क को प्रभावित नहीं करते ? यही हाल समाज का है। आज समाज का दायरा टूट रहा है। कभी मानव सामाजिक प्राणी कहलाता था, किन्तु आज मानव पर व्यक्तिवाद तेजी से हावी हो रहा है। समाज के अच्छे रीति-रिवाज भी रूहिग्रस्त रिवाजों के साथ समाप्त हो रहे हैं। सामाजिक अंकुश नाम की अब कोई वस्तु नहीं । समाज से विद्रोह करके हर कोई प्रगतिवादी मुखौटा धारण करना चाहता है, किन्तु विदेशों से आयातित यह प्रगतिशीलता भारतीयता को ही समाप्त कर रही है। ऐसी हालत में नन्हा बालक समाज से कैसे संस्कार ग्रहण करेगा ? संस्कार पैदा करने के लिये उत्तरदायी माने व्यक्ति तो बनना चाहते हैं किन्तु 1 घर, समाज और स्कूल वे तीनों स्थान बालकों के अन्दर अच्छे जाते हैं, किन्तु आजादी के बाद इन तीनों का स्वरूप तेजी से बदला है । सब सफल संस्कारवान् या सदाचारी व्यक्ति कोई नहीं बनना चाहता। आज जीवन का एकमात्र संस्कार रोटी हो गया है रोटी प्राप्त करने के लिए दिन-प्रतिदिन जिस तरह पापड़ बेलने पड़ते हैं, उसमें वह सब कुछ भूल जाता है। अपने-पराये का भेद समाप्त हो जाता है, मात्र रोटी उसका एकमात्र आदर्श रह जाता है। बालकों में संस्कार पैदा करने के लिये स्कूलों में नैतिक शिक्षा देने की बात की जाती है। ऐसी बातें वर्षों से सुन रहे हैं, किन्तु सरकार अपनी कुर्सी के चक्कर में कुछ भी नहीं कर पाती। देश में कुछ ऐसी शिक्षण संस्थाएँ अवश्य हैं, जिनमें बालकों में संस्कार पैदा करने के भरसक प्रयास किये जाते हैं । राणावास स्थित श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ द्वारा संचालित विभिन्न शिक्षण संस्थाएँ इसी श्रेणी में आती हैं, जो मानव मात्र की विशुद्ध सेवा के लिए कटिबद्ध हैं किन्तु ऐसी दो-चार संस्थाएँ सम्पूर्ण देश का कायाकल्प कैसे कर सकती हैं। ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों की प्राय: प्रशंसा की जाती है किन्तु एक तो ऐसे स्कूलों से गरीब का सम्बन्ध ही नहीं है, फिर इनकी फीस बहुत ऊँनी रहती है और यहाँ किताबी शिक्षा तो अच्छी मिल सकती है किन्तु संस्कार के नाम पर वहाँ से निकलने वाले छात्र नगण्य हैं। साम्प्रदायिकता की आड़ लेकर भी कुछ संस्थाएँ चल रही हैं, किन्तु उनका उद्देश्य छात्रों में संस्कार पैदा करना उतना नहीं है, जितना अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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