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________________ -.-.-.-.-. -. -.-. -. -. -. -. -. -. -. -. -. -. -.-. -. -.. छात्रों में संस्कार-निर्माण : घर, समाज व शिक्षक की भूमिका D श्री भंवरलाल आच्छा प्रधानाध्यापक, (श्री सुमति शिक्षा सदन उ० मा० विद्यालय, राणावास पाली) आज हमारे देश में संस्कारवान शिक्षा का नितान्त अभाव है। सरकार तो इस ओर एकदम निरपेक्ष बनी हुई है, किन्तु समाज की दृष्टि भी सवेष्ट नहीं है। माता-पिता और अभिभावक भी अपनी सन्तान को एक सफल व्यवसायी अपवा सफल चिकित्सक, इंजीनियर, प्रोफेसर या अधिकारी तो बनाना चाहते हैं लेकिन उनमें सम्यक् संस्कार उद्भूत हों, इस ओर वे बहुत कम चिन्तित रहते हैं। यही कारण है कि आज देश में चरित्र का संकट निरन्तर गहराता जा रहा है। हालत यह हो गई है भारत अपनी वास्तविक पहचान खोता चला जा रहा है और यहाँ भोगवादी संस्कृति क्रमशः फलती-फूलती जा रही है । ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि वालकों या छात्रों में अच्छे संस्कारों का निर्माण कैसे हो? अथवा हम उनमें किस प्रकार के संस्कार विकसित करें ? क्या हम संस्कार-निर्माण के नाम पर तथाकथित द्वैतपरक सभ्यता को तो जीवित नहीं रखना चाहते जो धार्मिक आराधना गृह में, सभा व समारोहों में तो सदाचार व नैतिकता का जयघोष करती हो किन्तु जीवन के कर्मक्षेत्र में छल-छद्म एवं भोगवादी सभ्यता की पोषक हो । कथनी और करनी का यह द्वैत आज हमारे देश में नासूर बनकर सभ्यता को लील रहा है। इस द्वैतवादी मनोवृत्ति से कोई अछूता नहीं है । व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सब में यह जहर बनकर फैलती जा रही है। अब तो हालत यहाँ तक गम्भीर होगई है कि धर्म के क्षेत्र में भी संस्कारों का सान्निध्य सन्दिध बनता चला जा रहा है । वहाँ पर भी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा, साम्प्रदायिकता और गुरुडम की भावना बलवती होती जा रही है। देश में तथाकथित भगवानों, योगियों और मठाधीशों ने तो इस हालत को और अधिक कलुषित किया है । संस्कारहीन राजनेताओं ने देश में भ्रष्टाचार को यत्र-तत्र प्रसारित कर दिया है। हर कोई रातों-रात लखपति बनने के चक्कर में हर तरह के हथकण्डे अपना रहा है। न तो कहीं मर्यादा है और न ही कहीं पर संयम । मानवीय मूल्य मात्र वाणी की शोभा रह गये हैं। देश क्रमश: दिशाहीन हो रहा है । सभ्यता दिग्भ्रमित है, इन्सान किंकर्तव्यविमूढ़ है । इस दयनीय दशा का एकमात्र सहारा संस्कारवान शिक्षा है। शिक्षा के माध्यम से छात्रों में जब तक मानवीय मूल्यों की पुनः स्थापना नहीं करेंगे, राष्ट्र के प्रति प्रेम को प्रोत्साहन नहीं देंगे, नैतिकता, सदाचार, सौहार्द्र और संकल्प की सरिता शिक्षालयों में प्रवाहित नहीं करेंगे तथा सांस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रयास नहीं करेंगे, तब तक मानसिक असन्तोष, तनाव एवं पारस्परिक दूरी कायम रहेगी। इसके लिये छात्रों में संस्कार-निर्माण संजीवनी बूटी की तरह हैं। लेकिन हमें इस बात को बहुत स्पष्ट कर लेना होगा कि संस्कार-निर्माण के नाम पर हम क्या कर लेना चाहते हैं । क्या हम एक सफल व्यक्ति पैदा करना चाहते हैं अथवा एक सदाचारी व्यक्ति बनाना चाहते हैं। वर्तमान सन्दर्भो में हर कोई यही कहेगा कि एक सफल व्यक्ति बनाना ज्यादा श्रेयस्कर है, किन्तु आज सफलता का मानदण्ड है छल-छद्म, झूठ-फरेब, बेईमानी, चापलूसी और दगाबाजी। जो इन में पारंगत है, वही सफल व्यक्ति बन सकता है। सदाचारी व्यक्ति कभी सफल व्यक्ति नहीं बन सकता है। आज जो सदाचारी है, वह नितान्त निर्धन, असहाय और .. ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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