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________________ -0 .० १२४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड धार्मिक कृत्यों द्वारा आपने अपनी आत्मा को अत्यन्त ही उज्जवल रूप प्रदान किया है, साथ ही हमें भी इसी मार्ग का अनुकरण करने की निरन्तर प्रेरणा दी है। श्रद्धय पूज्य 'माताजी एवं पिताजी ! आपके मातृ-पितृतुल्य प्रेम के संरक्षण में हमने केवल पुस्तकीय पाठ ही नहीं अपितु सच्चे हृदय की साक्षी में आदर्शमय जीवन का पाठ भी पड़ा है। आपने हम अवोध बालिकाओं को सुबोध एवं प्रवोध बनाने का जो अपूर्व प्रयत्न किया उसका किन शब्दों में आभार प्रदर्शन करें। आपका प्रेम अमरबेल के समान अमर बना रहे एवं आपकी कृपा कोर सदा बरसती रहे जिससे कि हम भावी जीवन में भली-भांति आगे बढ़ सकें । Jain Education International आज जिन हृदय की सद्भावनाओं के साथ इन सुन्दर क्षणों में हम आपसे बिछुड़ रही हैं उससे हमारा हृदय अत्यन्त ही वेदना से आकुल-व्याकुल हो रहा है । अन्त में हम आपसे यह प्रार्थना करती हैं कि आपका शुभ आशीर्वाद हमारे सिर पर सदा बना रहे जिससे कि हम भविष्य में उन्नति के मार्ग पर तीव्रगति से अग्रसर होती रहें । हम हैं आपकी विनम्र एवं आज्ञाकारिणी श्री अखिल भारतीय महिला शिक्षण संघ द्वारा संचालित श्री महावीर कन्या विद्यालय की दशम कक्षा की छात्राएँ सत्र १६६८-६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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