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________________ अभिनन्दनों का आलोक .-. -. -.-.-. -.-. -.-.-. -.-.-.-.-.-.-.-.-. -.-. -. -. -. -. -.-. -.-.-. -. -. -.-. -.-.. 09888888888 अभिनंदन-पत्र SONGSEBERRESERESERO सेवा में, कर्मठ व माननीय काका साहब श्री केसरीमलजी साहब सुराणा आदर्श निकेतन छात्रावास के दशम कक्षा के विद्यार्थी परम विनीत भाव से श्रद्धापूर्वक आपके कर-कमलों में आज इस अभिनन्दन पत्र को समर्पित करते हुए अत्यन्त गौरव का अनुभव कर रहे हैं। आपका आशीर्वाद लेकर परीक्षा देने हेतु हम विदाई ले रहे हैं अत: आपके चरणों की सामीप्य सुविधा के कारण जिस प्रसन्नता व सुख की उपलब्धि रही वह तो अब स्वप्नवत् ही होने जा रही है। परन्तु मान्यवर ! हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे हृदयों पर आपके त्यागमय, निःस्वार्थ सेवाभावी व धर्मानुरागी जीवन की जो छाप संजोई है, वह अमिट बनी रहेगी। महानुभाव! सादा जीवन की प्रतीक आपकी वेशभूषा, प्रेम से ओत-प्रोत प्रसन्न मुखमुद्रा, अचूक व अविलम्बित निर्णय प्रवृत्ति हम सदा स्मरण रखेंगे और जो पाठ आपकी स्पष्ट जीवन-प्रणाली से स्वाभाविक रूप से प्राप्त हुए हैं उन्हें अपने जीवन में सोत्साह उतारने में ही अपना कल्याण समझेंगे। इन अबोध बालकों को 'प्रिय छात्रो' ऐसे शब्दों द्वारा सम्बोधन करते हुए सुबोध व प्रबोध करने हेतु कष्ट उठाकर भी आपने हृदय में प्रसन्नता ही अनुभव की है। सादगी व उच्चता का अनुभवी जीवन निश्चय ही 'सरल स्वभाव छुआ छल नाही' का सुन्दर व सजीव चित्र ही है। परम श्रद्धय काका साहब ! विश्व वंद्य परम पूज्यनीय, अणुव्रत शास्ता, आचार्य तुलसी गणी के चरणों की कृपा से चातुर्मास में विद्वान् चारित्र आत्माओं की छत्रछाया का आनन्द जो हमको मिला है वह भी आप ही की तपस्या का फल ही तो है । परम आदरणीय ! आपके अगणित गुणों की गिनती जीवन भर हम करते ही रहेंगे परन्तु पार नहीं पा सकेंगे। शेष में, इस वियोग बेला में हमारे नेत्र तरल हो रहे हैं, हृदयों में जो अनुभव हो रहा है वह शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हैं। क्षमाशील काका साहब ! हम क्षुद्र बालक हैं, चंचल स्वभाव वाले हैं, त्रुटियों के पुतले हैं, अज्ञानी हैं, अपने छात्रवासी जीवन में नाना प्रकार की भूलें, उच्छृखलताएँ हमसे हुई हैं उसके लिए हम विनम्र भाव से नतमस्तक आपसे क्षमायाचना करते हैं । महान् आत्मा ! हमें आपका आशीर्वाद प्राप्त हो, हम बालकों पर कृपा बनी रहे यह है हमारी प्रार्थना, जो हम सब आज हाथ जोड़कर करते हैं, हमें पूर्ण विश्वास है यह स्वीकार होगी। आपका वरदहस्त हमारे नत मस्तकों पर हम सदा अनुभव करते रहें, आप पूर्ण स्वास्थ्यपूर्वक चिरायु रहें इस कामना के साथ विदाई मांगते हुए हम पुनः आपकी चरणरज शिरोधार्य करते हैं। आपके कृपाभिलाषी दशम कक्षा के छात्रगण सत्र १९६९-७० 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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