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________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड - . - . - . - . - . -. - . - . -. -. - . -. पिताजी तुम लगते प्यारे, हमारी आँखों के तारे । विद्यालय में विद्या पढ़ते, हम बच्चे सारे ।। तुमने अपना सब कुछ देकर, विद्यालय खुलवाये हैं। जिन में विद्या पढ़ने को हम बच्चे तेरे आये हैं BEBESEREESENSESENSEEDEBEDEO धन्य-धन्य है त्याग तुम्हारा, धन्य तुम्हारा जीवन है। तुमने न्यौछावर कर डाला, अपना सब तन-मन-धन है ।' चमकते ज्यों नभ में तारे। कु० प्रतिभा गांधी, (ब्यावर) पिताजी तुम लगते प्यारे ।। सूरज-सा है तेज तुम्हारा जो जग को चमकाता है। BSEBEISESENDEBEIDOESENDENDER चन्दा की शीतलता लेकर यश तेरा सरसाता है ।। फूलों की खुशबू को लेकर महक रहा तेरा जीवन । करती सरस्वती क्रीड़ाएँ, ज्ञान-प्रभामय ये आंगन ।। अविद्या-तम तुमसे हारे । पिताजी तुम लगते प्यारे॥ तुमने ज्ञान वृक्ष को रोपा, सींचा उसको बड़ा किया। इसकी छाया में रहकर है लाखों ने विश्राम किया। इसके फल-फूलों सम कितने छात्र बड़े बन पाये हैं। इस धरती के कण-कण ने बस तेरे ही गुण गाये हैं ।। 00 यह जीवन लुटायो है 0 श्री प्रेमचन्द रावल 'निरंकुश' काका तेरी महिमा को कैसे मैं बखान करू, कारज की बरखा के कीचड़ में धायो है। के ते नर-तन पाय, भूल गये धर्म-कर्म, सबको समान जान, मार्ग दर्सायो है। रीझ गई धरती की हरियाली फूलों जैसी, मन में दया को धर्म धन ही लुटायो है। लख तेरी लीलायें, यह जन-जन जाग उठ्यो, जीव दया सत्य को ही प्राण में बसायो है ॥ केसरी सो आत्मबल ! सत्य के पुजारी तुम ! मानव हितकारी संघ, खूब ही बणायो है। अहिंसा का आदि रूप, धन्य है यह 'तेरापंथ', देख-देख स्वर्ग को विधान भी लजायो है ।। युग-युग जीवें, यही प्रभु से पुकार करें, शिक्षा की ज्योति से राणावास चमकायो है। धरती पे स्वर्ग को उतार लियो तुम ही ने, काका के स्वरूप आगे-गांधी भी लजायो है। मोहन मुरारी कहूँ ? श्याम गिरधारी कहूँ ? बुद्ध, महावीर कहूँ? तेज कैसो पायो है ? कृष्ण बलवीर कहूँ ? ईसा अवतार कहूँ? आत्म-ज्योति पुज देख, स्वर्ग ही लजायो है ।। दर्शन से आत्मशान्ति, चरण पवित्र धूल, मानव की सेवा में, यह जीवन लुटायो है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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