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________________ काव्यांजलि १११ 외 외의 외 सम्यक्त्व की पहचान है, श्रावक गुण इक्कीस । रत हैं देव-गुरु-धर्म में, श्रद्धा विश्वावीस ॥१॥ दृढ़धर्मी श्रावक केसरी, है लाखों में एक । कृपापात्र गुरुदेव रा, समयज्ञ सुविवेक ॥२॥ मरुधर रो धोरी श्रावक, करे साधना अलबेली। धर्मसंघ री बढ़ी प्रभा वना, शासन सुषमा फैली ॥३॥ भेद-विज्ञान अति निर्मल, ज्यं धाय रमावै बाल । अनासक्त निलिप्त हो, करे आत्म-संभाल ॥४॥ एक करण एक योग से, हिंसा-करण रा त्याग। उभय टक प्रतिक्रमण करे, जगा आत्मा-विराग ॥५।। अप्पभासी मियासणी, जप-तप में अनुरक्त। सेवा, समर्पण, आत्मीयता, अनुशासन है सशक्त ॥६॥ कर्तव्यनिष्ठ व्यवहारकुशल, परीक्षक नम्बर वन । समाज सेवा करण में, लगा है तन-मन-धन ॥७॥ राणावास विद्याभूमि बणी, काका नाम प्रसिद्ध । फलित ओ परिश्रम रो, हयो काम सब सिद्ध ॥६॥ खिला गुलशन ज्ञान का, बोधि लाभ संयोग। विद्यार्जन के साथ में, मणि कांचन संयोग ।।६।। साध्वी श्री मधुमती (टमकोर) 00 त्याग का उत्कर्ष - मुनि श्री मानमल त्याग-तपस्यामय भारत का बना हुआ है शुभ इतिहास । तीव्र साधना का बहुतों ने सतत किया है सफल प्रयास । जैनधर्म में संवर-तप की प्रबल प्रेरणा है साक्षात । प्रेरित हैं पुष्कल मुनि श्रावक त्याग-सलिल में जो हैं स्नात ॥११॥ श्रमणोपासक स्वर्ण शृखला दृग्गोचर होती है आज । एक कड़ी चमकीली जिस पर श्रद्धान्वित है सकल समाज । नाम केसरीमल सुराणा जन्मभूमि है राणावास । बाह्याभ्यन्तर कठिन तपस्या करते पाने शिव आवास ॥२॥ एकादश श्रावक पडिमाएँ करके दिखलाया आदर्श। सामायिक स्वाध्याय ध्यान का जीवन में उज्ज्वल उत्कर्ष । जागरूक है आत्मरमण में अव्रत का पुष्कल अवसान । निज भावों की तन्मयता में नहीं आता किंचित व्यवधान ॥३॥ जड़ासक्ति का निज जीवन में निधन किया संयूत वैराग्य । आत्मवृत्ति व्यक्ति का जग में साधक कहते हैं अहोभाग्य ॥ शिव पत्तन का पथिक मनुज नहीं चाहता है भौतिक आराम । आत्मभाव में दक्षजनों का जीवन होता है निष्काम ॥४॥ भैक्षव शासन संघनायकों में जिनका पूरा विश्वास। आत्मनिष्ठता से तोड़ेंगे त्वरित गति से सब अघपाश ।। सहचरी सुन्दरदेवी का जिनको है सुन्दर सहयोग । सुकृत संचय से इनका है मणिकांचन सम सुखद संयोग ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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